Book Title: Anusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 156
________________ १४४ अनुसन्धान-७५(१) १९. "वाणमंतराणं जहा णेरइयाणं ओरालिया आहारगा य । वेउव्वियसरीरगा जहा णेरइयाणं, णवरं तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई संखेज्जजोयणसयवग्गपलिभागो पयरस्स" - प्रज्ञापनासूत्र, (पद १२) सूत्र ९२२, सम्पादक - मुनि श्रीपुण्यविजयजी २०. (i) "सर्वस्तोकाश्चतुरिन्द्रिया: पर्याप्ताः यतोऽल्पायुषश्चतुरिन्द्रियास्ततः प्रभूतकालम वस्थानाभावात् पृच्छासमये स्तोका अवाप्यन्ते, ते च स्तोका अपि प्रतरे यावन्त्यङ्गुलसङ्ख्येयभागमात्राणि खण्डानि तावत्प्रमाणा वेदितव्याः" - - प्रज्ञापनासूत्र (पद ३) सूत्र-५८ पर मलयगिरि वृत्ति, पत्रांक-१२१ब (आगमोदय समिति) - जीवाजीवाभिगमसूत्र, सूत्र २२५ पर मलयगिरि वृत्ति, पत्रांक ४१०ब (आगमोदय समिति) (ii) "खेत्तेण बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-पंचिंदिय तस्सेव पज्जत्तअपज्जत्तेहि पदरं अवहिरदि अगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण, अंगुलस्स संखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागवग्गपडिभाएण" - षटखण्डागम, द्वितीयक्षुद्रकबन्ध, द्रव्यप्रमाणानुगम नामक पाँचवां अनुयोगद्वार, सूत्र ६४ (षट्खण्डागम २/५/६४) पुस्तक ७, पृष्ठ २७० ___(सम्पादक - पं. फूलचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्री) (iii) "सूचिअंगुलस्स संखेज्जदिभागे वग्गिदे एदेसि पज्जत्ताणमवहारकालो होदि" - षट्खण्डागम २/५/६४ पर 'धवला' टीका, पुस्तकं ७, पृष्ठ २७० (सम्पादक - पं. फूलचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्री) २१. "देवित्थियाओ देवपुरिसेहितो बत्तीसइगुणाओ बत्तीसरूवाहियाओ" -- जीवाजीवाभिगमसूत्र, द्वितीय प्रतिपत्ति, अन्तिम सूत्र (सूत्र ६४) २२. "जोतिसियाणं एवं चेव । णवरं तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई बेछप्पण्णंगुलसयवग्गपलिभागो पयरस्स" - प्रज्ञापनासूत्र (पद १२) सूत्र ६२२, सम्पादक - मुनि श्रीपुण्यविजयजी २३. देखें बिन्दु ४ एवं ५ २४. (a) "थोवा य मणुस्सीओ नर नरयतिरिक्खओ असंखगुणा। सुरदेवी संखगुणा सिद्धा तिरिया अणंतगुणा ॥२७२॥" -- जीवसमास (अज्ञातकर्तृक), गाथा २७२, सम्पादक - आ. शीलचन्द्रसूरिजी (b) "तेभ्योऽपि तिरश्च्योऽसङ्ख्येयगुणा: महादण्डके हि नारकेभ्यो(5)सङ्ख्येयगुणा स्तिर्यक(क)पुरुषाः पठ्यन्ते तद्योषितस्तु तेभ्यस्त्रिगुणास्त्रिरूपाधिका इति युक्तं तासां नारकापेक्षयाऽसङ्ख्येयगुणत्वम्। - जीवसमास गाथा २७२ पर मलधारी हेमचन्द्रसूरिजी कृत वृत्ति पृष्ठ २३१ सम्पादक - आ. शीलचन्द्रसूरिजी

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