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सप्टेम्बर - २०१८
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- बिन्दु क्रमाङ्क-१
१. प्रज्ञापनासूत्र के पूर्वोक्त एक स्थल के आधार पर तिर्यञ्च स्त्रियों से देवों को असंख्यातगुणा बताया जा रहा है जबकि जीवाजीवाभिगमसूत्र में विभिन्न स्थलों पर तिर्यञ्च स्त्रियों से देव-देवियों को संख्येयगुणा बताया है। वे इस प्रकार हैं -
(१) जैसलमेर के आचार्य जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडार में विद्यमान जीवाजीवाभिगमसूत्र की एक ताड़पत्रीय प्रति में जीवाजीवाभिगम सूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति में तिर्यञ्च पुरुषों से देव पुरुषों को संख्येयगुणा बताया है। इस प्रति में पाठों को अपेक्षाकृत विस्तार से लिखा गया है। अन्य कुछ प्रतियों में इसी स्थान पर पुरुषों की अल्पबहुत्त्व के विषय में 'जहेवित्थीणं' कहकर स्त्रियों की अल्पबहुत्व की भोलावण दी है।
यद्यपि टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने स्त्रियों के अल्पबहुत्व का वर्णन करते हुए तिर्यञ्च स्त्रियों से देव स्त्रियों को असंख्येयगुण कह दिया है। किन्तु वे ही आचार्य मलयगिरि यहां पुरुषों के अल्पबहुत्व का वर्णन करते हुए तिर्यञ्च पुरुषों से देव पुरुषों को संख्येयगुणा कह रहे हैं । (विशेष स्पष्टीकरण बिन्दु क्रमाङ्क २ में देखें)
(२) जीवाजीवाभिगमसूत्र की सर्वजीवप्रतिपत्ति के अन्तर्गत अष्टविध प्रतिपत्ति में 'तिर्यञ्च स्त्री से देव को संख्येयगुणा' बताया है।'
___ (३) जीवाजीवाभिगमसूत्र की षष्ठ ‘सप्तविध' प्रतिपत्ति में 'तिर्यञ्च स्त्री से देव को संख्येयगुणा' बताया है ।१०
(४) जीवाजीवाभिगमसूत्र की द्वितीय 'त्रिविध' प्रतिपत्ति में 'तिर्यञ्च स्त्री से देव पुरुषों को संख्येयगुणा' बताया है ।११
(५) जीवाजीवाभिगमसूत्र की द्वितीय 'त्रिविध' प्रतिपत्ति में 'तिर्यञ्च स्त्री से देव स्त्रियों को संख्येयगुणी' बताया है ।१२
उपर्युक्त इन स्थलों पर किन्हीं-किन्हीं मुद्रित अथवा हस्तलिखित प्रतियों में कदाचित् लिपिप्रमादादिवश संख्येय की जगह असंख्येय भी अङ्कित हो गया है, तथापि मलयगिरि टीका में प्रायः सर्वत्र 'संख्येयगुण' का स्पष्टोल्लेख प्राप्त है।