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सप्टेम्बर २०१८
२.
तिर्यस स्त्री से देवों के अल्पबहुत्व की तटस्थ समीक्षा
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सारांश :
तिर्यञ्च स्त्री से देव 'संख्येयगुण' है, लेकिन कहीं-कहीं 'असंखेज्ज' पाठ आने से 'असंख्येयगुण' माना जाने लगा ।
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इस विषय में उभय पक्ष से प्राप्त पाठ आदि की तटस्थ विचारणा से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि तिर्यञ्च स्त्री से देव संख्येयगुण ही है असंख्येयगुण नहीं । एतत्सम्बन्धी संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -
१.
५.
आ. श्रीरामलालजी म.
६.
संख्यातगुणा के कई बोल मिलाकर असंख्यातगुणा हो सकते हैं। यहाँ इस परिकल्पना से संगति की जाने लगी; जो कि यहाँ कतई उपयुक्त नहीं है । (देखें 'भ्रान्त परिकल्पना' उपशीर्षक)
३. श्रीमद् जीवाजीवाभिगम सूत्र की मलयगिरि टीका में प्राय: सर्वत्र ' संख्येयगुणा' है। (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-२)
श्रीमद् जीवाजीवाभिगम सूत्र में अनेक स्थलों पर ' संख्येयगुणा' बताया है। (देखें - बिन्दु क्रमाङ्क -१)
४. असंख्येयगुणा मानने पर तिर्यञ्च स्त्री से गर्भज तिर्यञ्च नपुंसक को 'असंख्येय गुणा' मानना होगा, जो कि असंगत है, क्योंकि श्रीमद् भगवतीसूत्र में बताया है कि एक जीव एक भव में उत्कृष्ट पृथक्त्व लाख (संख्येय) पुत्र ही उत्पन्न कर सकता है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-३)
महादण्डक (९८ बोल) के ३८वें बोल से ४५ वें बोल की तुलना से
संख्येयगुणा स्पष्ट है तथा ३७वें बोल से ३८वें बोल को बहुत बड़ा संख्यातगुणा मानने की क्लिष्ट कल्पना अनौचित्य पूर्ण है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-४) जीवसमास (सवृत्तिक) तथा षट्खण्डागम ('धवला' टीका सहित) से भी ' संख्येयगुणा' स्पष्ट है । (देखें - बिन्दु क्रमाङ्क - ५ व ६)