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अनुसन्धान-७५(१)
विषयप्रवेश :
प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय पद में महादण्डक सम्बन्धी वर्णन इत्यादि पाठों से देवों की संख्या तिर्यञ्च स्त्री की अपेक्षा संख्येयगुणी प्राप्त होती है, तथापि इसी तृतीय पद में वर्णित गतिसम्बन्धी अल्पबहुत्व आदि में 'तिर्यञ्च स्त्री से देव असंख्येयगुण' ऐसा पाठ कहीं-कहीं आ जाने से महादण्डक में आगत संख्येयगुण को बड़े संख्येय के रूप में मानकर तिर्यञ्च स्त्री से देवों को असंख्येयगुण मानने की धारणा चलने लगी। इस विषय में उभयपक्षों में प्राप्त पाठादि की तटस्थ विचारणा से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि तिर्यञ्च स्त्री से देव संख्येयगुण ही हैं, असंख्येयगुण नहीं।
एतत्सम्बन्धी सविस्तर समीक्षा इस प्रकार है - - भ्रान्त-परिकल्पना
श्रीमत् प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय पद में आगत महादण्डक (९८ बोल की अल्पबहुत्व) में
३७. जलचर तिर्यञ्च स्त्री से ३८. वाणव्यन्तर देव संख्यातगुणा ३९. उससे वाणव्यंतर देवी संख्यातगुणी ४०. उससे ज्योतिषी देव संख्यातगुणा ४१. उससे ज्योतिषी देवी संख्यातगुणी बताई गई है। तदनुसार तिर्यञ्च
__स्त्री से देवी संख्यातगुणा प्राप्त होती है। __ प्रज्ञापनासूत्र के इसी तीसरे पद में 'गति' नामक द्वितीय द्वार में तिर्यञ्च स्त्री से देव 'असंख्यातगुणा' एवं उससे देवी संख्यातगुणी बताई गई । इस पाठ की संगति हेतु महादण्डक में आए ३८वें, ३९वें एवं ४०वें बोल के संख्यात को बहुत बड़ा मानकर तीनों संख्यात के मिलने से असंख्यात हो जाएगा, इस प्रकार की परिकल्पना भी वर्तमान में कहीं-कहीं प्रचलित है।
आगमों के आधार पर तटस्थ विचारणा करने से यह समझा जा सकता है कि वस्तुतः तिर्यञ्च स्त्री से ज्योतिषी देव संख्येयगुण ही होते हैं, असंख्येयगुण नहीं। इसके अनेक हेतु हैं जो बिन्दुशः इस प्रकार हैं -