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सप्टेम्बर
चन्द्रप्रभ जिनालयनुं अस्तित्व दर्शावे छे. सम्भवतः ई.स. १६१०मां आ मन्दिरनो जीर्णोद्धार थयो होवो जोईओ, त्यारथी अद्यापि तेनुं अस्तित्व अबाधितपणे चालु रहेल छे. छेल्ले प्रसिद्ध स्थपति स्व. श्री प्रभाशङ्कर सोमपुराना निदर्शन तळे तेनो मोटा पाया पर जीर्णोद्धार थयो. तो, कुमारपाळे ( सोलंकी) पण देवपत्तनमां पार्श्वनाथचैत्य बंधाव्यानुं श्रीहेमचन्द्राचार्य तेना द्वयाश्रयमां कहे छे. प्र. चि. मां श्री सोमेश्वरपत्तनना कुमारविहारनो जे उल्लेख छे, ते उक्त जिनालय मानी शकाय प्रस्तुत जिनालय १२ मी सदीना अन्त भागे बंधायुं होवानुं अनुमान करी शकाय .
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सोलंकीयुग दरम्यान अहीं (प्रभासमां) जैन मन्दिरोनी जाहोजलाली हशे जे हालना चन्द्रप्रभ जिनालयना भूमिगृहमां संगृहीत जिन प्रतिमाओनां परिकरो इत्यादि परथी जाणी शकाय छे. अहीं हाल जुदा जुदा दश पबासण अने अटला ज परिकरनां खण्डो छे. अहीं ओक वात नोंधीओ प्रभास हिन्दु - जैन धर्मनुं समयांतरे तीर्थ रह्या कर्तुं होई अहीं जैन देवालयो बंधायां होय से सहज छे. तो, विधर्मी आक्रमणो दरम्यान ते तूट्यां खण्डित पण थयां होय ए सहज छे. प्रभास पाटण अने वेरावल वच्चेना रस्ते दक्षिणे आवेल माईपुरी मस्जिद प्रभासनां प्राचीन स्थापत्योना अवशेषोमांथी बनावाई होवानो तद्विदोनो मत छे. माईपुरीना विताननी तमाम लाक्षणिकताओ १३ मी सदीना प्रारम्भकाळनी छे. ओमां जैन चिह्नङ्कनो पण छे. आज रीते जुमा मस्जिदमां पण बनेल छे. ई.स. १९२७मां डॉ. शार्लोटे ओमनी प्रभासनी मुलाकात वखते आ मस्जिदनी निरीक्षा कर्या बाद से जैन मन्दिर होवानो अभिप्राय आपेल. २०
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उलूघखानना प्रभास परना आक्रमण पूर्वे (ई.स. १२९८) प्रभासमां नीचे दर्शावेल जैन देवालयो विद्यमान हतां -
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चन्द्रप्रभ जिनालय (दिगम्बर सम्प्रदाय) चन्द्रप्रभ जिनालय (श्वेताम्बर सम्प्रदाय) राजा कुमारपाल निर्मित कुमार विहार प्रासाद (पार्श्वनाथ चैत्य)
वस्तुपाल निर्मित अष्टापद प्रासाद तेजपाल निर्मित आदिनाथ जिनालय पेथड शाह निर्मित (?) नेमिनाथ चैत्य. २१