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अनुसन्धान - ७५ ( १ )
कडीनी छे. पुराणा समये पूजा संस्कृत श्लोकबद्ध रहेती. श्लोकोनो पाठ / गान थाय अने अभिषेक आदि थाय. तेनी असर हेठळ एक कडीनी पूजाओ रचाई होय एवं अनुमान थई शके. देश्य भाषानुं महत्त्व वध्युं अने शास्त्रीय रागरागिणीमय संगीतनो प्रचार वध्यो त्यारे रागबद्ध पूजाओ शरू थई, ते पण एक-बे कडीनी ज रहेती. धीरे धीरे पूजानी रचना विस्तृत अने वैविध्ययुक्त बनी.
बीजी पूजा हाल अप्रचलित छे परन्तु एना समये ए खूब लोकप्रिय हशे . एमांनी जलपूजानी बे कडीओ आजे पण अभिषेक- शान्तिस्त्रात्रादिमां बोलाय छे. श्रीसकलचन्द्र वाचकनी एक अप्रगट रचना आ अंकमां बहार आवे छे. रचना कर्मसिद्धान्तविषयक छे. शास्त्रीय विषयोने लोको सुधी पहोंचाडवानुं काम आ प्रकारनी रचनाओ द्वारा विद्वान मुनिवरोए जे रीते कर्तुं छे ते उल्लेखनीय छे. शास्त्रीय पदार्थो पद्यबद्ध करवाथी ते कण्ठस्थ करवा सुगम थाय, आथी मध्यकालमां आवी रचनाओ विपुल प्रमाणमां थई छे. आवी कृतिओमां प्राकृत शब्दोनो छूटथी उपयोग थतो होवाथी मारुगूर्जर भाषा होवा छतां ए भाषानी एक आगवी मुद्रा जन्मी हती.
कवि ऋषभदास कृत 'जिनपूजाफलस्तवन' एक लाक्षणिक रचना छे. प्रभुदर्शन-वन्दन-पूजननुं फल अथवा रात्रिभोजन आदि पापोनुं फल आंकडाओमां वर्णवती आवी रचनाओ मध्यकाले अस्तित्वमां आवी छे. कर्मसिद्धान्त साथे तेनो सीधो सम्बन्ध बेसे तेम नथी. महिमास्थापन अने भय उत्पादन अर्थे एक काळे आवी पद्धति अपनाववामां आवी हती. तात्त्विक दृष्टिए आवा तोल - माप इष्ट नथी, अने सम्भवित पण नथी.
'विजयसिंहसूरीश्वर पद महोत्सव रास' एक ऐतिहासिक अने चरित्रात्मक रचना छे. वाचना शुद्ध छे केम के रासनी रचना अने लेखन वच्चे एक ज वर्षनुं अंतर छे तथा लखनार लिपिकार मुनि कविना निकट व्यक्ति छे.
ढाल १८नी देशीनी पंक्तिमां वाचनभूल छे. 'हिअयहीं डोलडइ' वांच्युं छे, त्यां 'हिअय हींडोलडइ' एम वांचवं संगत थाय.
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C/o. जैन देरासर नानी खाखर- ३७०४३५
जि. कच्छ, गुजरात