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अनुसन्धान-७५(१)
बंधाय त्यारे आ बन्नेनां कलास्वरूपोने तो केवळ सेक्युलर आर्टना धोरणे ज तपासवां जोईओ. आq थयुं होत तो 'रास' स्वरूपदृष्टिले अेक जैनस्रोतना ज प्रकार-स्वरूप रूपे जूदो ज पंगतमां बेसाडवो न पडत. जो के आम थयुं अनां मुख्य बे तत्त्वनिष्ठ कारणो छ : ओक तो आपणा प्राचीन मीमांसको पण मूळ संस्कृत परम्पराने वळगी रह्या, मुख्य आधाररूप मानता रह्या. परिणाम ओ आव्यु के पाली-अर्धमागधी अने अन्य प्राकृत प्रकारोनुं नQ Poetics न रचायु. संस्कृतनी पूर्वमीमांसाने ज मुख्य अने आधारभूत मानी, प्रशिष्ट मानी. प्राकृतोपरांत अपभ्रंशना भाषा अंगने तपास्युं ने एनां व्याकरण रचायां परंतु प्राकृत-अपभ्रंशमां पण जेवाजेटला नवां नवां स्वरूपो विकस्यां अने मीमांसामां न समाव्या. ओक ज मोटुं दृष्टान्त चरित-काव्यो अनी कृतिओ अने स्वरूप, छे. आख्यायिका अने महाकाव्यनी मीमांसामा चर्चा छे, चरितनी अक विकसित सक्षम नवा प्रकार-स्वरूप तरीके नथी. होय क्यांक, तो मारी जाणमां आवी नथी.
हकीकत छे के प्राचीनतम भारतीय कथासाहित्यमां, अनी Narrative Genre मां प्राचीन वीरचरितगाथामांथी अन्ते महाकाव्य स्वरूप दाखल संसिद्ध थयुं अने अमां पण शुद्ध साहित्यिक स्वरूपाङ्ग धरावता महाकाव्यना स्वरूपथी महाभारत जेवी कृतिमां जे 'एपिक आव् ग्रोव्थ'नुं संकुल स्वरूप छे ते संस्कृत-प्राकृतना पश्चिमना विद्वानोओ दर्शाव्युं छे. परंतु सामान्य अवी वीरगाथामांथी महाकाव्य केवी रीते विकास पाम्युं, अनी उत्पत्तिनी प्रक्रिया - evolution स्पष्ट नथी थयु. खरेखर तो स्थळे स्थळनी वीरगाथाओना वास्तविक मनाता वीरोनी गाथाओ, वेदमां इन्द्रसूक्तना रूपमा रूपान्तरण थयु, स्थानिक अनेक वीरोना पात्रो, इन्द्रमा प्रतीकीकरण थयुं, अमना ‘साका' (पराक्रमगाथा)नुं वेदसाहित्यनां इन्द्रसूक्तमा रूपान्तर थयुं अने अमांथी ज काळक्रमे महायुद्धो, वंशवेरनां विनाशक परिणामो परनी गाथाओमांथी ज मे अॅपिक ओव् ग्रोथ अने अॅपिक संसिद्ध थयां. वीरगाथा, 'साका' अटले के ओक पराक्रमगाथा अना गान अने विकास अने महाकाव्यरूप सर्जनो थयां. आमां महाकाव्यनां ज मुख्य तत्त्वो, व्यावर्तक लक्षणो, अनी व्याख्या वगेरेनुं मीमांसामां विशद स्पष्टीकरण - चर्चा थयां, जे भोजना 'शृङ्गार-प्रकाश' अने हेमचन्द्राचार्यना 'काव्यानुशासन'मां स्वरूपगत लक्षणो साथे चर्चायां. हेमचन्द्राचार्य सन्धिबन्ध, शब्दवैचित्र्य, अर्थवैचित्र्य जेवां मूळ तत्त्वोनी