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सप्टेम्बर २०१८
उत्कटता ऊंचाई धरावतो नाद अनी बमणी ऊंचाइओ पहोंचे त्यारे क्यां क्यां अ श्रव्य रूपे परखाय से भरतमुनिओ प्रयोगथी बताव्युं अ ज काळे ग्रीसमां पायथागोरसे पण अ प्रयोग-मथामणे सिद्ध करेलुं. भरत अने अना नाट्यशास्त्र पहेलां ज भारतमां आवी नृत्य-नाट्य-संगीतादिनी मीमांसानी परम्परा बंधाई चूकी हत अने नृत्य नाट्य तथा रसादिनी स्पष्टता थई चूकी हती. ॲरिस्टोटले जे ग्रीक ट्रेजेडीनी चर्चा करी, तत्त्वविचारणारूपे सिद्धान्तो बांध्या से पहेलां ज रस, औचित्यादिना मूल्याङ्कनना सिद्धान्तो भारतमां शास्त्रबद्ध थई चूकेला जेना आधारे ज भरत, भामहादि तत्त्वचर्चा आगळ वधारी.
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'रास' विशे पण आपणे मीमांसादृष्टि त्रिचार्यं तेमां धर्मतत्त्वने जूदुं न राखी शक्या से छे. खरे ज समजवानी आवश्यकता अनिवार्यता से छे के प्राचीन भारतीय आर्यो अने प्राचीन ग्रीकोओ ज्यारे पण कला-मीमांसानुं शास्त्र बांध्यं त्यारे अमने पण संगीत, नृत्य, नाटक साहित्यादि कलाओनी परम्पराओनां रूपो अने प्रस्तुतीकरणो लोकोमांथी मळेलां अने आवी. कलाओनो सीधो सम्बन्ध धर्मपरम्परा साथे ज हतो, छतां कलापदार्थने आ बन्ने आर्य परम्पराओओ Secular Art ना सन्दर्भे ज तपासी छे. आज 'सेक्युलर' नो जे अर्थ-विभावना छे ते नथी परंतु धर्मादि परम्परा, सिद्धान्त, मान्यता, प्रवर्तनहेतु आदिथी मुक्त ओवी कला-विभावना. ग्रीक परम्परा के भारतीय आर्य परम्परा होय, बन्नेओ मीमांसामां Secular Artनुं ज धोरण राख्युं. अनो अर्थ धर्मविहीन के रहित ओवो नथी, अथी सम्पूर्ण मुक्त अने स्वतन्त्र कला ओवो छे. नवा अर्थमां Pure Art. आ लक्षण छेक हेमचन्द्राचार्यमां पण जोवा मळशे. क्यांय कोई सन्दर्भे एमणे कलाचर्चामां धर्मपरम्परा अने संलग्नताने दृष्टिमां राख्यां नथी. आवुं ज वैदिक स्रोतना तेमना पूर्वेना मीमांसकोमां जोवा मळशे.
मने लागे छे के आमां क्यांक कोई सूक्ष्म विवेक आपणे चूक्या छीओ अने शुद्ध कलाधोरणने दृष्टिमां राखी शक्या नथी. जो के ओनो अर्थ से नथी के कलाप्रवाह अने धर्म बन्ने अलग ज राखवाना छे. आपणुं जे कंई प्राचीनमध्यकालीन साहित्य बच्युं, मळ्युं से धर्मपन्थना ज प्रवाहमांथी. आथी ज ज्यारे आवी तत्त्वचर्चा मांडीओ त्यारे सेक्टेरियन अने नोन-सेक्टेरियन, अर्थात् धर्मपन्थसंलग्न अने धर्मपन्थ - मुक्त अवो प्रवाह अनी सामग्रीने आधारे ज्यारे शास्त्र