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सप्टेम्बर - २०१८
मायाविमुक्त निर्लेपता, अने अना हंसरूप स्वरूपनुं तत्त्वज्ञान जनसामान्यने समजाववानो हेतु धरावे छे. आ माटे हंस राजा, मन प्रधान अने माया-मोह-विवेकरूपी पत्नीपुत्रनी उत्पाद्य ओवी कथा आपे छे. आत्मा तत्त्वदर्शन, वेदान्त तो अमणे संस्कृतमां समजाव्युं छे परन्तु ते मात्र विदग्धने ज समजमां आवे एवं छे आथी ज सामान्य जनने दृष्टिमा राखी अमणे आ रूपकाश्रयी कथा मांडी अने आ ज्ञानने, अनी प्रतीतिने त्रणे भुवनने अजवाळता दीपकनुरूपक आप्यु. आ रीते ज गणपतिने ओक सुन्दर कलाविद नवयुवान अने सुन्दर नृत्याङ्गना वाराङ्गनापुत्रीनी प्रेमकथा नथी कहेवानी, परन्तु अना आधारे रस, अलङ्कारसमृद्ध प्रशिष्ट रचना आपवानी छे. अहीं दृष्टिमां 'प्रबंध' ओटले 'प्रकृष्ट कथाबन्ध' ओ पण अर्थ छे, ओटले के कथाना आधारे बंधातुं साहित्यिक कृतिनुं रूप.
बीजी ओक परिस्थिति ओ प्रवर्ती के जे कथा मात्र मनोरंजक उत्पाद्य प्रकारनी न हती, परन्तु ओना कथासंलग्न पात्र अने घटना हकीकत मूलक अटले के कोई काळे बनी चूकेला हता. अमना जीवनकार्यचरितादिनी कृति माटे पण 'प्रबन्ध' ओवो जातिसूचक पर्याय प्रयोजायो. विमल प्रबन्ध, कुमारपाळ प्रबन्ध अने विशेषतः कान्हडदे प्रबन्धमां से प्रयोजायो. आथी इतिमूलक व्यक्तिघटनाने मात्र कथा, पद्यकथा के वारतामां न मूकता आपणा विद्वानोले 'अतिहासिक प्रबन्ध' ओवी ‘पद्यवार्ता' जेवी नवी ज संज्ञा आपीने प्रचलित करी. डॉ. के. बी. व्यासे करेला कान्हडदेप्रबन्धना सम्पादन अने अभ्यासमां आ पर्याय अने सोदाहरण चर्चा करी, ओ पछी आवी इतिमूलक कथा धरावती रचना माटे जैतिहासिक प्रबन्ध ओवी संज्ञा प्रयोजावा लागी. परन्तु काळक्रमे ऐतिहासिक प्रबन्धमा 'ऐतिहासिक मात्र वधारानं विशेषण मानी मात्र 'प्रबन्ध' कहेवायं अने रास, आख्यान, पद्यवार्ता अने प्रबन्ध ओ मध्यकालीन कथाश्रयी स्वरूपो छे, ओम बोलातुं-लखातुं थयु. आवी शिथिलताने कारणे हकीकते तो रास, आख्यान, पद्यवार्ता पण प्रबन्धजातिना पेटा प्रकार छे, तेवी स्पष्टता धुंधळी बनी.
__ अहीं बीजी पण ओक स्पष्टता करवानी जरूर छे के वीरगाथा, वीरकविता Heroic Poetry, वगेरे माटेना स्वरूप-वाचक पर्यायो तो वेदकालीन साकाथी आरम्भीने ते मध्यकालीन छन्द, पवाडो, साका, ओवी जुदी जुदी संज्ञाओ प्रयोजाई छे, जे अभ्यासीओना ध्यानमां न रही. 'साका'नो अर्थ पराक्रमना प्रसंगोनी शृङ्खला अवो छे. लोकमहाकाव्य 'निहालदे-सुलतान'मां नायकना आवा बावन