________________
सप्टेम्बर - २०१८
७१
विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
जैन स्तोत्रसाहित्यमा अभिवृद्धि करती बे सुन्दर रचनाओ अनुसन्धान७४मां स्थान पामी छे. बंने अनेकार्थी कृतिओ छे, ए दृष्टिए अनेकार्थक साहित्यमां पण बे विशिष्ट कृतिओनो उमेरो थाय छे. कमलबद्ध जिनस्तवनमा ६४ वार 'सारंग' अने ६४ वार 'हरि' शब्दनो उपयोग थयो छे. आ बे शब्दना अनेक अर्थ थाय छे, ए अर्थाने भिन्न भिन्न विशेषणोमां अवनवी कल्पनाओ द्वारा गूंथी लइने तथा श्लोकनी पंक्तिओमां पुनरावर्तन पामता अक्षरोने कणिकामां गोठवीने चित्रकाव्य- सर्जन करवामां आव्युं छे. श्लोकना चरणोमांथी एक-एक अक्षर लई २४ जिनेश्वरोमांथी बार जिनेश्वरनां नाम बने छे अने ए नामोथी वळी एक श्लोक बने छे. साथे श्रीहीरसूरिजीनुं तथा कवितुं नाम पण बने छे. आ श्लोक तथा पंक्ति कृतिना अंते अलग आपेला छे. चरणमांथी क्या अक्षर लेवा ए कदाच कमलबंध बनाववाथी जणाइ आवतुं हशे. बधां चरणो विशेषण छे तथा द्वितीया विभक्तिनां छे. अन्तिम श्लोकमां विशेष्य अने क्रियापद होवा जोइए पण ते जो के देखाता नथी.
बीजी अनेकार्थी रचनामां 'गौ' शब्दनो २४ अर्थमां विशेषणोमा प्रयोग करी प्रभुस्तुति करवामां आवी छे. रचना व्याकरणदृष्टिए शिथिल अने काव्यदृष्टिए क्लिष्ट छे. कर्ताना विद्यार्थीकाळनी रचना होय एवो संभव छे.
___कुलमण्डनसूरिकृत समस्याश्लोकोमा अन्तिम श्लोकमां समस्या छे ते प्रहेलिका प्रकारनी छे. आनो उकेल अंशत: 'माळा' - जपमाला जणाय छे परंतु पूरी संगति थती नथी. पाठकोमांथी कोईने आनो उत्तर सूझे तो जणाववा कृपा करे.
___ सत्तरभेदी पूजानी परम्परा प्राचीन छे. लोकोनी भाषामां गीत-संगीतमय पूजाओनी रचना प्रारम्भ थई तेमां सर्वप्रथम सत्तरभेदी पूजा रचाई हशे एवं मानी शकाय. श्रीसकलचन्द्रजी म. रचित सत्तरभेदी पूजा प्रसिद्ध छे. ए पूजाथी पण पहेलां आ पूजानी रचना एकथी वधारे कविओए करी छे. सोलमा शतकमां श्री पार्श्वचन्द्रसूरिए सत्तरभेदी पूजा रची छे. बीजी आवी पूजा आ अंकमां प्रगट थई छे, जेना कर्ता- नाम अज्ञात छे. पूजा संक्षिप्त छे, ढालो एक ज राग अने एक ज