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सप्टेम्बर - २०१८
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जे भारतीय विद्याभवन द्वारा 'सिंघी जैन ग्रन्थमाळा'ना ग्रन्थाङ्क ३४, ३५, ३६ रूपे त्रण भागमां ई.स. १९५३ थी १९६० दरम्यान प्रगट थयेल छे. आ त्रण ग्रन्थो श्री भायाणीओ श्री जिनविजयजीने अर्पण करेल छे.
हरिवल्लभ भायाणी जिनविजयजीना 'जैन साहित्य संशोधक' सामयिकथी परिचित हता अने बंध पडेलुं ओ सामयिक ६५ वर्ष पछी नवा स्वरूपे 'अनुसन्धान'ना नामे जाणे प्रगट थवानो योगानुयोग बन्यो होय अर्बु मने लागे छे अने तेमा मुख्य सहयोगी बन्या आचार्य शीलचन्द्रसूरि महाराज.
ई.स. १९९३मां 'अनुसन्धान'नो पहेलो अङ्क बहार पड्यो त्यारे ते अक नाना अङ्क रूपे बहार पडेलो जे आजे २५ वर्ष पछी अनेक दळदार अङ्को रूपे प्रगट थाय छे. ई.स. १९९३ थी ई.स. २००० सुधीना ८ वर्षमां तेना कुल १७ अङ्को प्रगट थया हता, जेमां मुख्य सम्पादको तरीके भायाणी साहेब अने शीलचन्द्रसूरिजीनां नामो छपातां हतां. आ अङ्कोने समृद्ध बनाववामां भायाणी साहेबनो विशिष्ट सहयोग रह्यो हतो. भारतना अने विदेशना जैन साहित्यना संशोधको साथे भायाणी साहेबने व्यापक सम्पर्क होवाने कारणे ओ बधा विद्वानोना साहित्य सर्जननो परिचय अने लाभ 'अनुसन्धान'ना वाचकोने ते गाळामां विशेष मळतो
रह्यो.
त्यारबाद 'अनुसन्धान'ना संयोजन, सम्पादन अने प्रकाशननी सम्पूर्ण जवाबदारी आचार्य शीलचन्द्रसूरिजी आज सुधी खूब ज रस अने निष्ठापूर्वक संभाळी रह्या छे. केटलाक विशिष्ट विशेषाङ्को, 'विज्ञप्तिपत्रो' उपरना खूब समृद्ध चार अङ्को अनेक विद्वद्जनोना साथ-सहकारथी बहार पड्या छे ते साहित्य जगतना अमूल्य संभारणा समान बनी शक्या छे. अभ्यासीओ अने विद्वद्जनोने ज रस पडे तेवं आ संशोधनने लगतुं सामयिक २५ वर्ष सुधी चालतुं रह्यं पण ओक आनन्द अने आश्चर्य उपजावे तेवी घटना छे.
___ बाकी तो आजथी त्रणसो वर्ष पहेला महान ज्ञानी उपाध्याय यशोविजयजी महाराजे लख्युं छे तेम, जैन संघनी स्थिति तो आजे पण, 'धामधूमे धमाधम चली, ज्ञान मारग रह्यो दूर रे' जेवी ज देखाय छे. पण अमां आश्वासन लई शकीले अवा विरल विद्वानो आगमप्रभाकर पुण्यविजयजी, पुरातत्त्वाचार्य जिनविजयजी, इतिहासवेत्ता कल्याणविजयजी अने दार्शनिक विद्वान जम्बूविजयजी जेवा ज्ञानमार्गना