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अनुसन्धान-७५(१)
प्रकाशित थयेला होवा जोईए ते कारण जवाबदार होई शके. ७. शब्दचर्चा
__ आ पत्रिकानी आगवी मूडी समान जूनी गुजराती, अपभ्रंश, प्राकृत अने संस्कृत शब्दोनी शब्दचर्चा. आ शब्दचर्चा भायाणीसाहेबे शरु करी हती, जे तेमनी हयाती सुधी चालु रही हती. आ चर्चामां जयंत कोठारी अने रमेश ओझाए पण थोडंक प्रदान कर्यु हतुं. आ अन्वये १४० जेटला शब्दो, मूळ, यथासम्भव जे ते समयनी विविध कृतिओमां थयेला तेना प्रयोगो अने आधुनिक युगमां मध्यकालीन कृतिओनां सम्पादनोमां चर्चा हेठळना शब्दनो मूळ संस्कृत शब्द, सम्बन्धित कृतिमां कया अर्थमां प्रयोजवामां आव्यो छे अने सम्पादक के विविध सम्पादको द्वारा करवामां आवेल अर्थघटनो विशे सोदाहरण अने तुलनात्मक परिप्रेक्ष्यमां ऊंडाणभरी रसप्रद चर्चा करवामां आवी छे. क्वचित् शब्दना प्रयोजके साचा अर्थमां प्रयोजेल होय, परन्तु तेना टीकाकारे तेनुं खोटं अर्थघटन कर्यु होय ते पण दर्शाववामां आव्युं छे. उदा. भायाणीसाहेबे 'प्रा. 'कसरक्क' शब्दनी चर्चा करतां 'वज्जालग्ग'नी गाथामां अने हेमचन्द्राचार्यए अपभ्रंश व्याकरण विभागना उदाहरणमां 'स्वादपूर्वक केरडाना कटका माणवा'ना अर्थमां प्रयोज्यो छे, ज्यारे 'वज्जालग्ग'ना टीकाकार रत्नदेवे 'कळी' एवो अर्थ को छे. 'वज्जालग्ग'ना सम्पादक पटवर्धने हेमचन्द्रे आपेला प्रयोगनी नोंध लीधी छे. (पृ. ४४९-४५०), परन्तु टीकाकारना अर्थ विशे कशी शङ्का करी नथी.' (८.१०८-१०९) विगते नोंध करी छे. वधुमां जे ते सन्दर्भित कृतिओनी वाङ्मयसूचिगत माहिती पण काळजीथी आपी छे, जे ध्यानार्ह बनी रहे छे. ८. आवरणचित्र समृद्धि
जैनशैली, जैन-गूर्जर शैली या मारु-गुर्जर शैलीनी चित्रकळाना विकासमां जैनाचार्यो अने जैनसमाजनुं पायानुं योगदान रह्यं छे. आ उपरान्त गुजरातमां शिल्प-स्थापत्यकळाना विकासमां जैन श्रेष्ठीओ अने जैन अमात्योनो फाळो सुवर्णाक्षरे अङ्कित छे. जैन ज्ञानभण्डारोमां सचवायेली अने सविशेषतः जैनकृतिओमां दोरवामां आवेलां लघुचित्रो तेम ज जिनालयोमा उपलब्ध प्रतिमाओ, धातुप्रतिमाओ, काष्ठशिल्पो वगेरे कलावारसाना केटलाक उत्तम