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अनुसन्धान- ७५ ( १ )
आस्थिति आ रीते सर्जाय ते केटलुं दुःखद छे ? ए संस्थाना अधिकारीओने सन्मति जागे अने ते चित्रो, जो अद्यावधि मूळ जग्याए पुनः प्रस्थापित न थयां होय तो पुनः प्रस्थापित थाय तेवी आशा सेवीए'. अहीं आप आचार्यश्रीनी वेदना स्पष्ट अनुभवी शकीए छीए. 'चन्दनबाळा अने मृगावती' तथा 'सती द्रौपदी अने नारद ऋषि' (६८) नां चित्रोनी पौराणिक पृष्ठभूमि वर्णवीने चित्रनी नजाकत उजागर करवानी साथे साध्वीजीने पलंग न होय छतां चित्रकारे लीधेली छूटनी नोंध लेवानुं आचार्यश्री चुक्या नथी.
९. सूचि
आपणे सौ जाणीए छीए के कोई पण साहित्य - विषय, ग्रन्थालय के सामयिकमां समाविष्ट सामग्रीनी शोध माटे सूचि आवश्यक छे. अनुभवे जणायुं छे के सूचि / शास्त्रीयसूचिविहोणां ग्रंथालयो, सामयिको के विषयोनी सामग्रीनी शोध प्राय: दुष्कर बनी रहे छे अने तेना अभावमां तेनुं अस्तित्व पण अर्थहीन पुरवार थाय छे. सूचिनी उपयोगिता अने महत्ताने ध्यानें लईने सम्पादक श्रीए 'अनुसन्धान'नी समयान्तरे सूचिओ तैयार करावडावी तेना अङ्कोमा प्रकाशित पण करी छे, जे आ सामयिकनी पोतीकी विशेषता बनी रहे छे. आ सूचिओ तैयार करवानुं श्रेय मुनिश्री धर्मकीर्तिविजयजी अने मुनिश्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजीना शिरे जाय छे. आ दृष्टिवन्त परिश्रमशील कार्य माटे 'अनुसन्धान' नुं विद्याजगत तेमनुं ऋणी बनी रहेशे.
आ पैकी अङ्क १ थी ५० नी सळंग संकलित सूचि अङ्क नं. ५१ (पृ. २१ थी १५५) मां अने अङ्क ५१ थी ६७नी सळंग सूचि अङ्क नं. ६८ (पृ. ८८ - १४१) मां प्रकाशित करवामां आवी छे. आ सामयिकनी आ बन्ने बृहत् सूचिओ उपरान्त थोडाक - थोडाक अङ्कोनी सूचिओ पण प्रगट करवामां आवी छे. आ बृहत् सूचिने मुख्य त्रण विभागो 'सम्पादनखण्ड', 'लेखनखण्ड' अने 'प्रकीर्णखण्ड 'मां विभाजित करवामां आवी छे. त्यारबाद 'सम्पादनखण्ड' मां भाषा अनुसार कृतिओने पद्य अने गद्यमां, तेम ज पद्य कृतिओने स्तोत्रात्मक अने वर्णनात्मकमां वर्गीकृत करीने अकारादिक्रममां गोठवीने पुनः आदिपदानुक्रम अने आदिवाक्यना अकारादिक्रममां सूचि आपवामां आवी छे अने छेल्ले कर्तासूचि : निश्चितकर्तृक अने अज्ञातकर्तृकमां विभाजित करीने तैयार करवामां