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अनुसन्धान-७५(१)
राजस्थानना ज्ञानभण्डारोमां संगृहीत आ अणमोल विरासतने उजागर करी आपीने न केवळ जैन साहित्यनी, परंतु समग्र भारतीय साहित्यनी महती सेवा करी छे. आ चारेय विशेषाङ्कोमा कुल १३५ विज्ञप्तिपत्रो समाविष्ट छे, जे पैकी ९३ पत्रो संस्कृत अने ४२ पत्रो मारु-गूर्जर भाषामां लखवामां आवेला छे, जेनो रचनाकाळ १५मी सदीथी २०मी सदीनो पूर्वार्ध रह्यो छे. आ बधा पत्रो पैकी मुनि सुयशचन्द्रविजय अने मुनि सुजसचन्द्रविजय - ८०, मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय - ३१, विजयशीलचन्द्रसूरि - १४, पं. महोपाध्याय विनयसागर - ४, कल्याणकीर्तिविजय - २, अने मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी तथा साध्वी समयप्रज्ञाश्री द्वारा १-१ पत्र- सम्पादन करवामां आव्युं छे. आ बधा सम्पादकोए पण पत्रना प्रारम्भे तेनो परिचय करावीने पत्रमा प्रयोजायेला अघरा के अप्रचलित शब्दोना अर्थ पण आप्या छे. अहीं समाविष्ट पत्रो पैकी लांबामां लांबो पत्र औरंगाबादमां बिराजमान तपगच्छपति श्रीविजयदेवसूरिने सरोतरा नगरे रहेला तेमना पट्टशिष्य विजयसिंहसूरि द्वारा वि.सं. १६९९ मां संस्कृत भाषामां लखवामां आव्यो छे, जे- सम्पादन मुनि धुरन्धरविजयजी द्वारा करवामां आव्युं छे.
___ सम्पादक आचार्यश्रीए जे ते अङ्कमां समाविष्ट विज्ञप्तिपत्र- सारगर्भित अध्ययन रजू करीने तेना विषयवस्तुना विश्लेषण उपरांत काव्यतत्त्व, छन्दो, अलङ्कारो, ऐतिहासिक तथ्यो, पत्र कया ज्ञानभण्डार के व्यक्तिगत संग्रहनो छे अने कोना माध्यमथी प्राप्त थयो, कोणे प्रतिलिपि तैयार करी, कोणे सम्पादन कएँ वगेरे सम्बन्धी विगतो वर्णवी छे. आ बधा पत्रोना सघन अध्ययन अने अवलोकनोमां प्रस्फुटित थतो आचार्यश्रीनो संशोधनात्मक अभिगम ध्यानार्ह बनी रहे छे. आ सन्दर्भे तेमनी नोंध द्रष्टव्य छे : 'ऐतिहासिक विगतोनी अल्पताने नजरअंदाज करीए तो काव्यतत्त्व अने गुरुभक्तिनी रीते आ पत्रसाहित्य बेजोड छे. जगतनी अन्य कोई गुरु-शिष्य परम्परामां आवा पत्रो आटला विपुल प्रमाणमां लखायानुं जाणमां नथी... पत्र लखती वखते तेणे हैयुं गुरुबहुमानमां वहावी दीधुं होय तेवी प्रतीति थाय छे.... घणाखरा श्लोको काव्यकला के कल्पनावैभवनी दृष्टिए उत्कृष्ट कोटिना छे.... पत्रलेखकव्याकरणज्ञान अत्यन्त प्रगल्भ लागे छे... महासमुद्रदण्डक छन्दमां एक ज