________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनन्तर दूसरे विद्वानों द्वारा रचित रसशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ इमको आदर्श मानकर चले हैं ऐसा प्रतीत होता है।
३ आचार्य श्री शाङ्गधर.
“शिशती' नामक त्रिदोषज्वर निदानचिकित्सा विषयक ग्रन्थ के लेखक आचार्य शार्गधर थे । इनके पिताका नाम आचार्य देवराज था । पन्द्रहवीं शती में आयुर्वेदके परम विद्धानोंमें इनकी गणना होनेका उल्लेख मिलता है । इससे ये चौदहवीं या इससे पूर्वकी शती में उत्पन्न हुए होंगे ।
'त्रिशती ' नामक ग्रन्थ में त्रिदोष ज्वरकी चिकित्सा और निदान सम्बन्धी प्रामाणिक और विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है ।
भावप्रकाशकारने इसी ग्रन्थको प्रमाण मानकर इसीके आधार पर त्रिदोषज्वनिदानचिकित्सा सम्बन्धी अपने ग्रन्थ का निर्माण किया है ।
४ वैद्य श्री रघुनाथ इन्द्रजी ( कता भट्ट )
" निघण्टसंग्रह" नामक ग्रन्थ के लेखक वैद्य श्री रघुनाथजी जूनागढके निवासी थे । इनके गुरु श्री विठ्ठल भट्टजी जामनगरके निवासी थे । श्री विठ्ठल भट्टजी का जन्म संवत १७९६ में हुआ था।
श्री विठ्ठल भट्टजी के शिष्य होनेसे श्री रघुनाथजी उनके समकालीन और उत्तरकालीन होना चाहिये ।
इस अनुपानमंजरीकार का समय १८३७-३८ के आसपास का ।
इससे यह प्रतीत होता है कि श्री विठ्ठल भट्टजी का जन्म समय १७९६ से अनुपानमंजरीकार के लेखन का समय १८३७-३८ होनेसे प्राय:
For Private And Personal Use Only