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अथ अनुपानमंजरी
श्री गणेशाय नमः ॥ अथ अनुपानमंजरी प्रारंभः ॥
प्रथमः समुद्देशः
१ मंगलाचरणम्
यस्य ज्ञानमयी मूर्तिः सच्चिदानन्दकारिणी । तत्पादपंकजं वन्दे ग्रन्थसंपूर्ति हेतवे ॥१॥
जिसकी ज्ञानमय मूर्ति है और जो सत्, चित् तथा आनन्द स्वरूप है । उसके चरणकमलको ग्रन्थ समाप्तिके लिए मैं प्रणाम करता हूं ॥१॥ २ ग्रन्थप्रयोजनवर्णनम्
धातुस्तथोपधातुश्च विषं स्थावरजंगमम् । 'तद्विकारस्य शान्त्यर्थम् वक्ष्येऽनुपानमंजरीम् ॥२॥ .
धातु तथा उपधातुके विकारोंकी शांति और स्थावर और जंगम विषके विकारोंकी शांतिके लिए अनुपानमंजरी" नामक ग्रन्थकी रचना करता हूं ॥२॥
१ तस्य विकारशान्त्यर्थ इति ख ग घ च छ पुस्तकेषु पाठः
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