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जम्बीरी रस अथवा वारिमर्दित लाजाका तीन दिन पर्यन्त पान करनेसे तुत्थक विकारकी शान्ति होती है |१९|| २६ मृदासंगविकारशान्ति.
गवां घृतं सितायुक्तं मृदासंगस्य शान्तिकृत । तच चाम्लकरस. सद्यो विकृतिशान्तिकृत ॥२०॥
शर्करायुक्त गोत अथवा अग्लरसयुक्त इम्ली निम्बू आदि द्रव्यों के रसका सेवन करनेसे मृदासंगके विकारोंकी शान्ति होती है ॥२०॥ २७ नवसादर-मृति-गैरिक-कासीस-काच-तौरी-विकारशान्तिः
गादर्भ शकृतं भक्ष्येत् तथैव नवसादरम । मृत्ति-गैर-कासीस-काचं तौरी च शान्तिकृत् ? ॥२१।।
गर्दभके शकृत् का ( जलके साथ ) भक्षण करनेसे नवसार, मृति, गैरिक, कासीस, काच और तौरी ( फीटकरी ) के विकारोंकी शान्ति होती है ॥२१॥ २८ मुक्ता-प्रवाल-हीरकविकारशान्ति
घृतं मधुसितायुक्तं गोदुग्धेन समं पिबेत् । तस्य मुक्ताप्रवालस्य हीरकस्य विष हरेत् ॥२२॥
मधु और शर्करा से युक्त घृतका गोदुग्धके साथ पान करनेसे मुक्ता, प्रवाल तथा हीरकके विषकी शान्ति होती है ॥२२॥
इति श्री अनुपानमंजर्या' उपधातुविकारशान्तिप्रकरणं नाम द्वितीयः समुदेशः ॥
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