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पल परिमाण बाणपुंख के रसको शर्करा के साथ प्रातःकाल उठ कर पीने से मूषकके विषका नाश होता है ॥१८||
५२ श्वेतमूषकजन्यग्रन्थिचिकित्सा
मूषकः पतितः चोर्ध्वात् श्वेतवर्णः सुदारुणः । पातस्थाने भवेत् ग्रन्थिः सा ग्रन्थिः मृत्युकारका ॥१९||
श्वेत वर्णका सुदारुण मूषक जिस स्थान पर ऊपरसे गिरता है, उस स्थानमें और उसके आसपास ग्रन्थि उत्पन्न होती है तथा वह ग्रन्थि मृत्युका कारण बनती है ॥१९||
शम्त्रेण प्रन्थिं विस्फेाट्य गार्दभं शकृतं पिबेत् । तेन मूषकदष्टस्य विकृतेः शान्तिकृत भवेत् ।२०।
उक्त प्रन्थिका शस्त्रसे भेदन करना और गार्दभ शकृतका पान करना चाहिए । इससे मूषक दशके सभी विकार शान्त होते हैं ॥२०॥
५३ सिहबालविषशान्तिः
मधु च पलमानं च दिनविंशतिकं पिबेत् । तस्य सिंहवालसस्य ? विषं न स्यात कदाचन ।२१।
वीस दिन पर्यन्त पल मान मधुका पान करने वाले पुरुषको सिंहबाल से उत्पन्न विकारों की शान्ति होती है ।।२१॥
५४ भ्रामरीमक्षिकाविषशान्तिः
माहिषं नवनीतं तक्रं दंशे च मईयेत् । भ्रामरी माक्षिकाशान्तिस्तथा च नागफेनकात् ॥२२॥
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