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५८ जलविकारशान्तिः
अलस्य विकृतिर्यस्य तस्य मण्डूरमर्पयेत् । गार्दभं शकृत तद्वत् तद्वच्चाजस्य शकृतम् ।।२६।।१
दुष्ट जलको पीने से उत्पन्न विकृतिकी शान्ति लिए, मण्डूर, गर्दभ शकृत् तथा अजाशकृत्का सेवन करना चाहिए ॥२६॥
५९ मत्कुणदूरीकरणोपायः
अर्कतूलमयी वर्तिः भाविता यावकेन च । कटुतैलाक्तदीपस्था निशायां मत्कुणापहा ॥२७॥
अर्कके रूइसे निर्मित बतीको यावकसे भावित करके कडुवे तैलके दीपमें रखकर रात्रिमें उपयोग करनेसे मत्कुण दूर हो जाते है ॥२७॥
६० मूषकादीनां नि सारणोपाय
भल्लातार्कफलं मुस्ता कपिकच्छुः पुनर्नवा । रालसिद्धार्थावतेषां चूर्णधूपप्रभावतः ॥२८॥ मूषकाः मशका माक्षी मत्कुणा विषकीटकाः । पलायन्ते गृहं मुक्त्वा यथा युद्धेऽतिकातरा: ॥२९॥
भल्लातक, अर्कफल, मुस्ता, कपिकच्छु, पुनर्नवा, राल और गौर सर्षप- इनके चूर्ण के धूपके प्रभावले मूषक, मशक, माक्षी, मत्कुण तथा अन्य सभी प्रकारके विषकीटक युद्ध में अतिकातरके समान घर छोडकर भाग जाते है ॥२८-२९।।
१ अयं श्लोक: ज पुस्तके नोपलम्यते
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