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Achar
माहिष नवनीत, माहिषतक्र तथा नागफेन-इनमैसे किसी एकका दंशके ऊपर मर्दन करनेसे भ्रामरी मक्षिकाके दंशकी शान्ति होती है ॥२२॥
५५ कर्णप्रविष्टखर्जूरडंकदूरीकरणोपायः
कर्णे प्रविष्टे खजूरे कर्जे मूत्रकं क्षिपेत् । तथैव तिलतैलं च डंके वस्तु च तत्तथा ॥२३॥
कर्णखजूर अथवा डंक नामक मक्षिका का कर्णमें प्रवेश होने पर कानमें मानवमूत्र अथवा तिलतैलका प्रक्षेप करना चाहिए ॥२३॥
५६ दंशनिधिषीकरणम्
जिह्वायास्तालुकायोगादमृतस्रवण तु यत् । विलिप्त तेन दंशस्य निविषं क्षणमात्रणः ॥२४॥
जिह्वाके तालुका योगसे जो अमृतस्त्रवण (थूक) होता है उसको दंश स्थान पर लगानेसे तत्क्षण निर्विष होता है ॥२४||
५७ छुछुन्दविषविकारशान्तिः
छुछुन्दरस्य दृष्टस्य गरल चोदरे गतम । तस्य काञ्जिकपानेन निर्विषं जायते क्षणात्' ॥२५॥
छुछुन्दरका दंश होने पर अथवा उसका विष उदरमें गया हो तो दंश स्थान पर कांजीका लेप और कांजीका पान करनेसे तत्क्षण निर्विष होता है ॥२५॥
१ अयं श्लोकः ज पुस्तके नापलम्यते
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