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Achan
अथ तृतीयः समुद्देश:
२९ नागफेनविकारशान्ति
बृहत्क्षुद्रारसः दुग्धं पलमाननिषेवणात् । नागफेनविषं नश्येत् स जीवति चिरं पुमान् ॥१॥
दुग्धके साथ एक पल प्रमाण बृहत्क्षुद्राके रसका सेवन करनेसे अहिफेन विषका नाश होता है और वह मनुष्य मृत्युभयसे मुक्त होता है ।।।
उग्रा सिन्धुः तथा कृष्णा मज्जा' मदनकं फलम् । तेन वान्तिः भवेत् सद्यो नागफेनविषं हरेत् ॥२॥
वचा, सैन्धव, पिप्पली और मदनफलकी मज्जा देनेसे वमन होता है और इससे नागफेन विषका नाश होता है ।।२।।
(टंकगं तुत्थकं चौव घृतयुक्तं च दापयेत् । तेन वान्तिः भवेत् सद्यो नागफेनविषं न्यसेत्)२
( टंकण और तुत्थकको धृतके साथ देनेसे शीघ्र ही वमन होता है और इससे नागफेन विषका नाश होता है )
३० धत्तविकारशान्ति:
वृन्ताकफलबीजस्य रसो हि पलमात्रया । भक्षणात भुक्तधत्तूरविषं नश्यति निश्चितम् ॥३॥
१ व्यधः इति ज पुस्तके पाठः २ ग च पुस्तकयोः अधिकः पाठः
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