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नवनीतयुक्त मेघनादरसके लेपसे भल्लातक से उद्भूत शोथ नष्ट होता है ।।५।।
दारुसर्पपमुस्ताभिः नवनीतेन लेपयेत् । भल्लातकविकारोऽयम् सद्यो गच्छति देहिनाम् ॥६॥
नवनीतके साथ दारु, सर्पप और मुस्ताका लेप करनेसे भल्लातक विकारकी शान्ति होती है ।।६।।
नवनीततिलादुग्धैः पुनः खण्डघृतेन च । एतद्वयप्रलेपेन हन्ति भल्लातकव्यथाम् ॥
नवनीत और तिलको दूधके साथ अथवा शर्कराको घृतके साथ लेप करनेसे भल्लातकसे उत्पन्न व्यथा शान्त होती है ।।७।।
३३ भंगाविकारशान्ति:
गोदधि शुठीयुक्तं च पाने भंगाविकारनुत् । आर्द्रकस देसडा तद्वत् जले पिष्टवा पिबेन्नरः ॥८॥
पीसकर
शुंठीयुक्त गोदधि और संदेसडा के आर्द्रमूल को जलमें पान करनेसे भांगके विकारों की शांति होती है ।।८।।
३४ उच्चटाविकारशान्तिः
मेघनादरसा ग्राह्यो शर्करायुक्तपानतः । उच्चटायाः विकारस्य शान्ति: स्यात् दुग्धसेवनात् ॥९॥
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१ "पुनः खण्डयुतं तथा" इति ज पुस्तके पाठः
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