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४६ श्वानविषशान्तिः
श्वानदंष्ट्राविष हन्ति लेपः कुक्कुटविष्ठया । गुडैस्तैलार्कदुग्धैश्च लेपः श्वानविषं हरेत् ॥८॥
कुक्कुटके विष्ठाका तथा गुड और तैलसे मिश्रित अर्क दुग्धका दंश प्रदेशमें लेप करनेसे श्वान विष नष्ट होता है ॥८॥
उन्मत्तश्वानदष्टानां कुमारीदलसैन्धवम् । सुखोष्णापः पिबन्पीडां त्रिदिनान्ते सुखावहम ? ॥९।
सैन्धवमिश्रित कुमारीदलको कवोष्ण जलके साथ पीनेवाले पुरुषको उन्मत्त श्वानके दंशकी पीडा तीन दिनमें शान्त होती है और सुख प्राप्त होता है ॥९॥
तैल तिलानां पललं गुड च क्षीर तथा सममेव पीतम् । आलर्कमुग्र विषमाशु हन्ति सद्योभवं वायुरिवाभ्रवृन्दम् ॥१०॥
तिलतैल, पलाण्डु, गुड तथा अर्कक्षीर इन सबको एक साथ पीनेसे उग्र अलर्क विष, वायुसे मेघके समान तुरन्त दूर होता है ||१०!!
जात्या ? शुष्कार्कमूलं च मरिच कर्षभक्षणात् । तव्रणं तत्क्षणादेव दहेत लोहशलाकया ।११।
शुष्क अर्क मूलको मरिचके साथ कर्षमात्रामें भक्षण करनेसे और व्रणको तप्तलोह शलाकासे तत्काल दाग देनेसे अलर्क विष शान्त होता है ॥११॥
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