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धनियाको जलमें पीसकर और शर्करा मिलाकर पान करनेसे दन्ती. बीजके विकारोंकी शान्ति होती है ॥१६॥
४२ कोचकविकारशान्तिः
घृत मधुसितायुक्त य पिबति सदा नरः । 'तस्य विष कोचकस्य विकारशान्तिकृत् भवेत् ॥१७॥
मधु और शर्करायुक्त घृतका पान करनेसे विषकोचक-कुचैलाके विकारोंकी शान्ति होती है ॥१७॥
४३ लूकरोगशान्तिः
दुष्टवातैः रवेस्तापैः लूकरोगश्च जायते । चिंचाम्लक मधुसिते पृथक् जलेन पाययेत् ॥१८॥
सूर्यके तापयुक्त दुष्टवायुसे लूक रोग उत्पन्न होता है । इसके शमनके लिए चिंचामलक और शर्करा तथा मधुयुक्त जलका पान करना चाहिए ॥१८॥
१ विषकोचविकारस्य शान्तिस्तस्य प्रजायते । इति ज पुस्तके पाठः २ चिचाम्लकसिताक्षौद्रान् दापयेत्तु पृथक् जले । इति ज पुस्तके पाठः
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