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नाश होता है || ३ |!
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वृन्ताकफलरसका पलमात्र प्रमाण में भक्षण करने से धत्तरविषका
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( एक प्रस्थ परिमाण गोदुग्ध और पल प्रमाण शर्करा का पान करनेसे धत्रविका नाश होता है ।
( गोदुग्धप्रस्थमेकं तु पलद्वयं तु शर्करा ।
तत्पानेन विषं याति धतूरकस्य निश्चितम् II ) कार्पासास्थि तथा पुष्पं जलेनात्क्वाथ्य पानतः । धत्तरस्य विषं याति यथा लवणसेवनात् ॥ ) 1
कार्पासके अस्थि और पुष्पके क्वाथका पान करनेसे लवण सेवन के समान धत्तरविषका नाश होता है )
वत्सनाभविकारशान्तिः
पटवणस्य वृक्षस्य रसो पलप्रमाणतः । शर्करायुक्तपानेन वत्सनागविषं हरेत् ||४||
पटवण वृक्षके पल प्रमाण रसको शर्करा के साथ areनागविषका नाश होता है ||४||
पान करने से
भल्लातकविकारशान्ति:
रसो हि मेघनादस्य नवनीतसमन्वितः ।
भल्लातसंभवं शोफं हन्ति लेपेन देहिनाम् ||५||
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ग घ च छ ज पुस्तकेषु अधिकौ २ लोकौ
२ हीरवणस्य इति ग पुस्तके पट्टशनस्य इति जं पुस्तकें पाठ: