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२३ मल्लविकारशान्तिः
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घृतकें साथ मरिच चूर्णका सात दिन पर्यन्त सेवन करने से शिलाजित और अमलवेतस के विकारोंकी शान्ति होती है || १५||
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सितया सह पानाच्च मेघनादरसस्य च । तस्मात् मल्लविषं हन्ति यथा निम्बू सेवनात् ॥ १६॥
जिस प्रकार निम्बूके रसका प्रसेवन करनेसे मल्लविषका नाश होता है, उसी प्रकारसे मेघनाद - चौलाइके रसका शर्कराके साथ सेवन करनेसे भी मल्लविषका नाश होता है ||१६||
गोपयः खदरोद्भूतं सितायुक्तं तथैव च ।
यः सेवयेद् याममेकं मल्लशान्तिः भवेत् ध्रुवम् ||१७||
२४ रसकर्पूरविकारशान्तिः
शर्करायुक्त गोदुग्ध अथवा शर्करायुक्त खदिरसारका सेवन करनेसे
एक याममात्र समय में मल्लविषकी शान्ति होती है ||१७||
धान्यकसितया युक्तं वारिमर्दितपानतः । रसकर्पूरशान्तिः स्यात् तथा महिषीकृतः || १८ ||
शर्करायुक्त धनियाको जलमें पीसकर पान करनेसे अथवा महिषी शकृत् के रसका शर्करा के साथ पान करनेसे रसकर्पूरके विकारकी शान्ति होती है ||१८||
२५ तुत्थकविकारशान्तिः
जम्बीरीरसमादाय य पिबति दिनत्रयम् ।
तस्य तुत्थकशान्तिः स्यात् तद्वल्लाजेन वारिणा ||१९||
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