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Achar
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१९ बलिविकारशान्तिः
गवां पयो घृतयुतं बाल विकृतिशान्तिकृत् । तथैव देवकुसुमं वचायुक्तं च शान्तिकृत् ॥१२॥
वृतयुक्त गोदुग्ध अथवा बचायुक्त लवंगका सेवन करनेसे बलि-गन्धकके विकारकी शान्ति होती है ॥१२॥
२० अभ्रकविकारशान्तिः
धात्रीफलं जले पिष्टवा य. सेवेद्वा दिनत्रयम । तस्य विकारशान्ति: स्यादधकस्य न संशयः ॥१३॥
भात्री-आमलको फलको जलमें पीसकर तीन दिन पर्यन्त सेवन करनेसे अभ्रकके विकारकी शान्ति होती है ॥१३॥
२१ माक्षिविकारशान्तिः
कुलत्थस्य कषायेण माक्षिविकारशान्तिकृत् । तौब दाडिमत्वचा देयाः देहसुखार्थिने ॥१४॥
देहसुखकी कामना रखनेवाले पुरुषको माक्षिक विकारकी शान्तिके लिए कुलत्थ कषाय अथवा दाडिम त्वचाका सेवन करना चाहिए ।।१४।।
२२ शिलाजतुविकारशान्तिः
मरिच घृतसंयुक्त सेवते दिनसप्तकम् । तस्य शिलाजिच्छान्तिः स्यात् तद्वद्वेतसशान्तिकृत् ? ॥१५॥
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