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कुष्मांडरस, धमासा अथवा हंसराजके रसके सेवन से तालके
विकारको शान्ति होती है ॥८॥
सौवर्णपुष्पी भूनिम्बक्वाथं पिवेत दिनत्रयम् । तालविकारशान्तिः स्यात् कामशान्तिः यथा स्त्रिया || ९ ||
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जिस प्रकार स्त्रीके सेवन से कामकी शान्ति होती है । उसी प्रकारसे सुवर्णपुष्पी और भूनिम्बके क्वाथका तीन दिन पर्यन्त सेवन करने से तालविकारकी शान्ति होती है ||९||
यथा रसविषं हन्यात् गोदुग्धेन च गन्धकम् । तथा सतिसर्पाक्षीरसो तालविषं पुनः । १०॥
१८ मनः शिलाविकारशान्तिः
जिस प्रकार गोदुग्धके साथ गन्धकका सेवन करनेसे रस- पारदका विष नष्ट होता है, उसी प्रकारसे शर्करा युक्त सर्पाक्षी के रसका सेवन करनेसे तालका विष नष्ट होता है ॥ १० ॥
जीरकं माक्षिकयुतं सेवते यो दिनत्रयम | मनःशिलविकारश्च तद्देहान्नश्यति ध्रुवम् ||११||
मधुयुक्त जीरक चूर्णका तीन दिन पर्यन्त सेवन करनेसे मनःशिला के विकार अवश्य नष्ट होता है || ११||
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'तस्य विकारं कुनटी न करोति कदाचन" ।
इति ख ज पुस्तकयोः पाठः
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