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जिस प्रकार सत्पुरुषोंके सत्संग से अज्ञानरूप अंधकारकी निवृत्ति होती है, उसी प्रकार से मधु और शर्करायुक्त एलायची चूर्णका तीन दिन पर्यन्त सेवन करनेसे आर (यशद) विकारकी शान्ति होती है ॥९॥
९ त्रिधातुविकारशान्तिः
यः पुमान् प्रातरुत्थाय त्रिफलाचूर्णसेवकः । तस्य त्रिधातोः शान्तिः स्यात् यथा पापं शिवार्चने ॥१०॥
जिस प्रकार भगवान शंकरके पूजन से पाप को निवृत्ति होती है, उसी प्रकार से जो व्यक्ति प्रातः कालमें त्रिफला चूर्णका सेवन करता है उसके त्रिधातु (नाग, बंग और यशद) विकारकी शान्ति होती है ॥१०॥
१० अयोविकारशान्तिः
सैन्धवं त्रिवृतायुक्तं सेवितं तप्तवारिणा । अयोविकारशान्तिः स्यात् पापं केशवदर्शनात् । ११ ।
जिस प्रकार भगवान विष्णु के दर्शन से पापकी निवृत्ति होती है, उसी प्रकार से त्रिवृतायुक्त सैन्धवका उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे अयो विकारको शान्ति होती है ॥११॥
दूर्वारसं समादाय मधुना वा पिबेन्नरः । अयोविकारशान्तिः स्यात् कष्टं देवार्चाने यथा ॥१२॥
जिस प्रकार देवपूजनसे कष्टकी निवृत्ति होती है, उसी प्रकारसे मधुयुक्त दूरिसका पान करनेसे अयोविकारकी शान्ति होती है ॥१२॥
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