________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४ घोषविकारशान्तिः
चिंचाफलानि पक्वानि जले पिष्ट्वा पिबेन्नरः । घोषविकारशान्तिः स्यात् दारिद्रयं निधिदर्शनात् १.१६॥
जिस प्रकार निधिको प्राप्त करनेसे दरिद्रताकी निवृत्ति होती है, उसी प्रकारसे पक्व चिंचाफलको जलमें पीस कर पान करनेसे घोष ( कांस्य ) के विकारकी शान्ति होती है ॥१६॥
____ इति श्री अनुपानमंजर्या धातुविकारशान्तिप्रकरणं नाम प्रथमः समुद्देशः ॥
For Private And Personal Use Only