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५. ताम्रविकारशान्तिः
'वनव्रीहि सितायुक्तां जले पिष्ट्वा दिनत्रयम् । यः पिबेत् प्रातरुत्थाय ताम्रशान्तिर्भवेत् ध्रुवम् ॥६॥
शर्करायुक्त वनव्रीहि ( सौंफ) को तीन दिन पर्यन्त जलके साथ पीस कर प्रातः कालमें पान करनेसे ताम्र विकारकी शान्ति होती है ॥६॥
६ नागविकारशान्तिः
हेमाहरीतकीयुक्तां सितां खादेत दिनत्रयम् । सद्यो नागविकारस्य शान्तिः भवति निश्चितम् ॥७॥
शर्करासे युक्त हेमाहरीतकीका तीन दिन पर्यन्त भक्षण करनेसे नाग विकारको शांति शीघ्र और निश्चितरूपमें होती है ॥७॥
७ बंगविकारशान्तिः
सेपशूगी सितायुक्तां यः खादेच्च दिनत्रयम् । बंगविकारशान्ति: स्यात् तमः चन्द्रोदये यथा ॥८॥
जिस प्रकार चन्द्रके उदय से अन्धकारकी निवृत्ति होती है, उसी प्रकार शर्करा युक्त में ढाशी गो का तीन दिन पर्यन्त सेवन करनेसे बंग के विकारकी शान्ति होती है ॥ ८ ॥
८ आरविकारशान्तिः
सेवितं मधुखण्डाभ्यां त्रुटिचूर्ण दिनत्रयम् ।
आरविकारशान्तिः स्यात् तिमिरं साधुसंगमे ।।९।। १ वनब्राह्मीं इति क पुस्तके पाठ:
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