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अनुपानमंजरीके विवादास्पद विषय
अनुपानमंजरीमें खनिज द्रव्योंके धातु और उपधातु इस प्रकार दो वर्ग दिये हैं । रसशास्त्र के प्राचीन और अर्वाचीन ग्रन्थोमे किसी भी ग्रन्थमे इस प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया गया है । रसशास्त्राके ग्रन्थोमें दिये गए वर्गीकरणसे सर्वथा नवीन वर्गीकरण इस अनुपानमंजरीमे दृष्टिगोचर होता है ।
चरकसंहितामें जांगम, औद्भिद, और पार्थिव (भौम) इस प्रकार औषध द्रव्योंका वर्गीकरण किया गया है। इन्हीं द्रव्योंको पुनः शारीरिक विशेषता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।
दंष्ट्री, विषाणी, एकशफ, सरीसृप, बिलेशय, आदि जंगमके मूलिनी, फलिनी, क्षीरि, पुष्पवर्ग, पल्लव, त्वक्वर्ग, कण्टक, तृण, आदि उद्भिदके, धातु उपधातु, रस, उपरस, रत्न, उपरत्न, विष, उपविष, क्षार आदि रूपमें खनिज-भूमिज या पार्थिव द्रव्योंका वर्गीकरण करनेका प्रचार निघण्टु ओर रसशास्त्र के विकास से हुआ है ।
आचार्यश्री विश्रामके सामने इस ग्रन्थ की रचना के समय रस, धातु, विष, रत्न और इनके अवान्तर वर्ग उपरस, उपधातु, उपविष, उपरत्न आदि के लिए किसी एक निश्चित परिभाषा का होना प्रतीत नहीं होता । इस प्रकार इस ग्रन्थ में ग्रन्थकारने खनिज द्रव्योंके वर्गीकरणका एक स्वतंत्र मार्ग ही अपनाया हैं ।
प्रथम समुदेश
प्रस्तुत ग्रन्थके प्रथम समुद्देशमें सात धातुओंका उल्लेख तज्जन्य विकार वर्णनके प्रसंगमें किया गया है । सुवर्ण, रौप्य, ताम्र, बंग, नाग,
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