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इस प्रकार धातु जनित विकार और स्थावर जंगम विष विकारों के शमनार्थ प्रयुक्त प्रौषध से प्राप्त होने वाली शान्तिको उपरिवर्णित रूपमें उपमा द्वारा प्रशंसित किया है । इससे अनुपान मंजरीकारका साहित्य सेवी और संवेदना प्राप्त सहृदय कवि होना समर्थित होता है ।
अनुपानमंजरी हस्तप्रत -
अनुपान मंजरी की छ : हस्त प्रत और एक जीरोकस कापी इस प्रकार सात प्रतियां हमें प्राप्त हुई हैं।
इन प्रतियोंमें चार हस्तलिखित प्रतियां गुलाबकुंवरबा आयुर्वेद सोसायटी जामनगर के संग्रहालयसे और दो प्रति गोंडल के सरकार द्वारा प्राप्त हस्त लिखित पुस्तक के संग्रह से प्राप्त हुई हैं।
इस प्रकार छ हस्त प्रत हमारे विभागको प्राप्त होने के उपरांत एक जीरोकस कापी इंडिया आफिस लायब्रेरी लंदन से मंगवाई गई । इस प्रकार इस अनुपान मंजरी के प्रकाशन कार्य की सहायताके लिए सात पुस्तकों का संग्रह किया गया। इन सात पुस्तकों को" क" से" ज" तक नाम दिया गया है । इन सातों पुस्तकोंका क्रमशः विस्तृत परिचय आगे देंगे ।
गोंडलसे प्राप्त दो हस्त प्रतमें एक अपूर्ण है। इस प्रतिमें दो समुद्देशही प्राप्त होते हैं । एक प्रति लिपिकार, लेखक, लेखन काल आदिके निर्देश के साथ सर्वाग संपूर्ण सुवाच्य अक्षरों से युक्त होने से आदर्श प्रति के रूपमें क पुस्तकके नामसे स्वीकृत की गई है । अपूर्ण हस्त प्रतको ख-नामसे संकेतित किया गया है।
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