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इस ज प्रति में प्रकरण संख्या आठ और श्लोक संख्या २७५ है जो सर्वाधिक है।
___ ज - प्रतिमें पिगविकारशान्ति और मल्लविकारशान्तिके कुछ श्लोक महीं है ।
ज- प्रतिके तुतीय प्रकरण के ३, ५, ६ श्लोक यहांकी प्रस्तुत पुस्तक की टिप्पणी में है। श्लोक ११, १२, यहाकी प्रतिमें नहीं हैं।
ज -- प्रतिके चतुर्थ प्रकरणमें यहांको प्रस्तुत प्रतिके १, १२, २५, २६ और ३० ये पांच श्लोक नहीं है।
ज- प्रतिके पञ्चम प्रकरणमें एक मात्र प्रतिज्ञा
अथातः संप्रवक्ष्यामि धातूपधातुमारणम् । रोगाणामनुपानं च संक्षेपात्कथ्यतेऽधुना ।। १
इस श्लोक को छोड कर यहां की प्रस्तुत प्रति के साथ कुछ भी समान नहीं है।
पञ्चम प्रकरणमें प्रदर्शित धातु, उपधातु के शोधन मारण के वर्णन प्रकार यहां की प्रस्तुत प्रति से सर्वथा भिन्न है ।
___ज - प्रतिके छठे प्रकरण में उपधातु शोधन मारण सम्बन्धी विवरण दिया गया है । यह विवरण यहांकी प्रस्तुत प्रति के पञ्चम प्रकरणसें सर्वथा भिन्न है।
ज - प्रतिके सातवें प्रकरणमें पथ्यापथ्यके नव श्लोक दिये गये हैं । इन श्लोका उल्लेख यहाँकी प्रस्तुत प्रति के पांचवें प्रकरणमे किया गया है।
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