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ज - पतिका आठवां प्रकरण परिभाषा प्रकरण है। इस प्रकरणमे मगधमान, कलिंगमान आदिका वर्णन किया गया है। इस विषय का उल्लेख महांकी प्रस्तुत प्रतितमें नहीं है ।
इस प्रतितका आठवां प्रकरण भावप्रकाशके मान सम्बन्धी परिभाषा प्रकरणके साथ शब्द - अर्थ - और क्रमसे इतना समान है कि सीधा भावपकाशसे ही उद्त किया जाना समर्थित किया जा सकता है ।
प्रस्तुत प्रकाशनके अन्त में १ से ८ परिशिष्टोमे खनिज, प्राणिज औद्भिद द्रव्य, तथा अन्य द्रव्य, स्थावर और अंगम विष, धातु उपधातुकी रसशास्त्रीय परिभाषा विकारशमनार्थ अनुपान, और विविध रोग और अनुपान आद विषयोंको स्पष्ट करनेके हेतु विस्तृत तालिकाएं दे दी गई हैं । इससे पाठकोंका मूल ग्रन्थके आशय समझनेमें सहायता होनेकी आशा है ।
.... इस प्रकार यथा शक्य विस्तृत विवरणके साथ यह अनुपान मंजरी नामक पुस्तक आयुर्वेदके विशिष्ट विद्वान और अनुसंधान कार्यमें संलग्न परिश्रमशील विचारकोंके समक्ष मुद्रित रूपमें प्रस्तुत करते हुए हम परम सुख और संतोषका अनुभव करते हैं।
स्वातंत्र्य रजतोत्सव
१५-८-७२ जामनगर.
वि. ज. ठाकर, अध्यक्ष साहित्य संशोधन विभाग
(मौलिक सिद्धान्त ) गुजरात आयुर्वेद मुनिवर्सिटी जामनगर.
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