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करने वाले शरीरोपकारक द्रव्य के लिए प्रयुक्त किया गया है।
___ इसी प्रकार औषध के सहायक बनकर उसके अभीष्ट गुणको परिवद्धित करने वाला तथा विरोधी गुणको अपरुद्ध करनेवाला द्रव पदार्थभी औषध अथवा भेषजानुपान कहा जा सकता है ।
मधु, धृत, तैल, ये तीनों द्रव्य तीन दोषोंके औषधोंके लिए सर्व सम्मत अनुपान प्राचीन कालसे व्यवहृत केवल जल अन्न और औषधका स्वभाव सिद्ध अनुपान है।
वैद्य परंपरामें द्रव्यके अपेक्षित गुणके अनुरुप दूध, मधु स्वरस कपाय आदि भी अनुपानके रुपमें प्रयुक्त होते हैं ।
रसतरंगिणीकारने ६ तरंग श्लोक १९९-२०२ सहपान तथा अनुपान इस रूपमें सूक्ष्म द्रष्टिसे दो भेद किये हैं। यह विशेष अवधेय है ।
इन दोनोंसे भेषजका, 'उपबृंहण' कार्य शक्तिकी वृद्धिका वर्णन करते हुए सह पानसे भेषजके सूक्ष्म कण जिस द्रव्यके साथ मिलकर शरीरमें शीघ्र प्रसारित हों वह सहपान तथा मुख्य औषध के सहायकके रूपमें रोगहरण समर्थ विशिष्ट औषधका द्रवरूपमे स्वरस कथ, आसव, अरिष्ट, क्षीर प्रादि रूपम उपरसे पृथक् रुपमे पान किया जाय जिससे रोगहरण शीघ्र और सरल हो सके उसको अनुपान शब्दसे व्यवहृत किया जाता है ।
__ अनुपानकी मुख्य विशेषताको प्रदर्शित करते हुए अग्निवेश महर्षिने आहारगुणोंसे विपरीत किन्तु विशेषकर धातुओं के लिए अविरुद्ध द्रव्य अनुपान कहा जाता है । इससे उस द्रव्यके पाचनमें और शरीर में शीघ्रता पूर्वक प्रसार
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