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ग्रन्थकार के द्वारा स्थानगत मेह के कथन के लिए अंगनामदनमेह और योनिमेह आदि शब्दोंका प्रयोग इसकी अपनी कल्पनाशीलताका परिचायक है ।
श्वसनक शब्द श्वास रोगके ही वाचकके रूपमें अथवा श्वसन सन्नि पात (न्यूमोनिया) के वाचकके रूपमें नवीन शब्द निर्माण है यह भी एक प्रश्न है । मधुके साथ त्रिकटुका अनुपान दोनों परिस्थितियों में उचित है ।
शीतरोग - शीतांग या अतिस्वेदसे अंगों के ठंडे पड़ जाने की अवस्था का निर्देश और इस अवस्थामें तत्काल उष्णता लाने के हेतु उत्तेजक ताम्बूल पत्रको मरिच चूर्णके साथ अनुपान के रुपमें प्रयोग उचित प्रतीत होता है ।
इस प्रकार इस विवरणसे यह पंचम समुद्देश रसतंग तथा कायचिकित्सा के अनुसंधानकर्तामों के लिए पर्याप्त ऊहापोह और नवीन अनुसंधान के लिए कार्यक्षेत्र प्रस्तुत करता है ।
अनुपान शब्द ( शास्त्रीय अर्थ ) अनुपान शब्द से बहायी सम्मत परिभाषा के अनुसार
यदाहारगुणैः पानं विपरीतं तदिष्यते । अन्नानुपानं धातूनां दृष्टं यन्न विरोधि च ॥
च. सू.अ. २७-३२९
यहां अनुपान शब्द अन्नानुपानके लिए हैं जो आहारके उपरांत पान किया जाने वाला एव पदार्थ जो उस भुक्त अन्नको पचाने में सहायक और उसके अभीष्ट गुणको सरलतासे प्राप्त कराने वाले और विरोधी गुणको विफल
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