Book Title: Anupan Manjari
Author(s): Vishram Acharya
Publisher: Gujarat Aayurved University

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (लोहसिद्धि) और व्याधिनाशन तथा रसायन प्रभाव ( देहसिद्धि ) होता है इस प्रकार साधिकार कथन का आधार उनका अपना अनुभव होने पर भी विशिष्ट विश्वजनोंके परीक्षा और प्रायोगिकके अनन्तर ही स्वीकार योग्य है । वस्तुतः उक्त वर्णन बलिजारणके साथ समान है किन्तु बलि जारित पारद का भी कज्जली सिन्दूर आदिके रूपमें ही व्याधि नाशनके लिये परम्परासे सिद्ध है इस ग्रन्थ में निर्दिष्ट प्रकार सर्बथा नवीन है । • अभ्रकका भी कोई स्वतंत्र शोधन धान्याधीकरण आदि न देकर केवल अकंक्षीर में मर्दन करके चक्रिका बनाकर अर्कपत्र में लपेट कर सातवार गजपुट देनेसे ही भस्म बनने का कथन किया गया है । हरिताल की भस्म बनाने के विधिको विशेषता यह है कि यह भस्म श्वेत वर्णकी और मूल द्रव्यसे १/८ मात्रा में बनती है । इस भस्मकी औषध रूपमें माया भी २ चावल १/३ रत्ती बताई गई है । भस्मविधि के लिए हर ताल और पिप्पली चूर्ण एक कपडेकी पोटली में बांधकर तैल, चूनेका पानी, शर्करा जल, प्रत्येकमें सात सात दिन रखनेसे शुध्धि होती है । इसके अनन्तर इसको निकालकर धोकर खरलमें साथ ५/धृतके साथ मर्दन करना इसके अनन्तर दुग्ध, मधु और शर्करा प्रत्येकके साथ मर्दनकर चक्रिका बनानी चाहिये । इसके अनन्तर अर्कपत्र उपर नीचे संपुटके रूपमें रखकर गजपुट देनेका विधान किया है । इसके अनन्तर मृत्तिका कपालमें रखकर अग्नि देनेसे श्वेत भस्म बनने का निर्देश किया गया है। For Private And Personal Use Only

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