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अन्यत्र सात सातवार निर्वाप करनेका विधान किया गयाहै परंतु यहां इस ग्रन्थ में निर्वाप सम्बन्धी किसी निश्चित संख्याका निर्देश नहीं है ।
जारण
अन्यत्र प्रसिद्ध जारण क्रिया के निर्देशके बिना ही सीधे ही शोधन के मनन्तर मारणका ही उल्लेख किया गया है ।
मारण
लोहका ३ गजपुटमें मण्डस्के १ मजपुट में तत्क्षण मारण के निर्देशको विका दास्पद और प्रायोगिक परीक्षाको अनन्तर ही स्वीकार योग्य मानना चाहिये ।
बंग ओर नागकी श्वेत भस्मका निर्देश किया गया है। इनका मारण दो उपलों के पुट से ही बताया गया है। बंग के लिए शुष्क निम्ब पत्र के गोले के मध्यमें रख कर तथा सीसे को अपामार्गके शुष्कपत्रके गोले के मध्य में रखकर दो उपलों के पुट ही भस्म बननेका निर्देश अत्यन्त सरल होने परभी प्रायोगिक परीक्षणके अनन्तर ही स्वीकार योग्य मानना चाहिये ।
यशदको लोहेकी कडाही में डालकर एक प्रहर पर्यन्त त्रुटी (इलायची) के चूर्णके साथ अग्नि देनेका विधान आधुनिक कालके जारणके समान ही है । याधुनिक कालमें जारणके अनन्तर मारण अवश्य करनेका आदेश है परंतु इस ग्रन्थमें कडाहीमें ही भरम बननेका सर्वथा नवीन प्रकार ही प्रदर्शित किया गया है।
इस ग्रन्थ चें. उत्थापन विषयक वर्णनमें मिश्रपंचकमें से गुड और गुंजा को छोडकर घृत-माक्षिक-टंकण इन तीन द्रव्योंके साथ मर्दन करके तीव्र
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