________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
होने में सहायता होती है तथा उस द्रव्यका परिणाम सुख कर ही होता है
और अनिष्ट परिणामोंका वारण होता है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुपान मंजरीकार की द्रष्टिमें भी अनुपान शब्द चरक सुश्रुत तथा रसशास्त्र की परंपरा के अनुसार ही अर्थवाचक के रूपमें ही पंचम समुद्देशमें शुद्ध मारित घातुओं के विविध रोगों में प्रयोगकें समय विविध कषायोंके रूपमें उल्लिखित किया है ।
इसके उपरांत भी इस ग्रन्थकारकी प्रारंभिक प्रतिज्ञा श्लोक मे अशुद्ध धातू - उपधातु जनित अथवा स्थावर जंगम विषके फल स्वरूप उत्पन्न विकारोंके शमनार्थ प्रस्तुत विविध योग भी अनुपान शब्द वाच्य है ।
इस प्रकार इस ग्रन्थकारने अनुपान शब्दका व्यापक अर्थ में प्रयोग किया है ।
अनुपानमंजरीमे उपमा
इस अनुपान मंजरीकारने औषधियोगोंकी प्रशस्ति के लिए कुछ उपमाओंका निर्देश इस प्रकार किया है ।
यथा भानूदये तम: १/४
तमः सूर्योदये यथा । व्याधिनिग्रह ११९
तमः चन्द्रोदये यथा । १/८
तिमिरं साधुसंगमान् १ / ९
पातकं गुरुवन्दनात् । १/१५ स्नानाद्देहमलं यथा । १/१२
For Private And Personal Use Only