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अन्य समाप्ति - इति श्री अनुपान मंजर्या धातृपधातु मारण रोगा
नुपान सहितं पंचमोपदेशः संवदष्टादशे वर्षे नाग चाधिकेष्टिके आश्वनाया परे पक्षे अद्रिशूरसंज्ञिके ।। इति समानः ।। लें. त्रवाडी काशीरामस्य आत्मज मगन आत्मपठनार्थ । श्रीरस्तु श्री कल्याणमस्तु ।
(ख) ग्रन्थ 'प्रारंभ
ग्रन्थसमाप्ति
श्री गणेशाय नमः । समुद्देश २ श्लोक-१५ पर्यन्त प्रायः अपूर्ण
(ग) अन्य प्रारंभ:- श्री गणेशाय नमः । श्री धन्वन्तरिये नमः । ग्रन्थ समाप्ति :- इति श्री अनुपान मंजर्या धातूपधातुमारणं रोगा
नुपान प्रकर्ण नाम पञ्चम समुद्देशः ॥५॥ संवत् १८६१ वर्षे आषाढ शुद ५ गुरौ।। गुरुजी श्री पू. लालजी चेला मूलजी पठनार्थ लेखक पाठकयोः शुभं भूयात् ।।श्री॥
ग्रन्थ प्रारंभ:
श्री गौतमाय नमः । श्री गुरुभ्यो नमः । श्री धन्वन्त राय नमः।
ग्रथि समाप्ति :- इति श्री अनुपान मंजर्या धातुउपधातु मारणं
रोगानुपान प्रकर्ण' नाम पञ्चमा समुद्देशः ॥ इति अनुपान मंजरी संपूर्णा ।।
(च-छ) (च-छ) प्रति
(घ) पुस्तक का अनुलेखन मात्र ही है।
(ज) ग्रन्थ के प्रारंभ में नमः आदि और ग्रन्थ समाप्ति के समय, लिपिकार,
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