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गजपुट की अग्नि तीव्र होती है और यह अग्नि अधिक कालस्थायी है । हरतालका इस प्रकारके अग्निपर भी स्थिर रहना विशेष विचारणीय है । इस लिए यह विषय रसशास्त्राके योग्य परीक्षणके अनन्तर ही स्वीकार योग्य माना जाना चाहिये । मृत हरितालके गुणवर्णनके आधार रूप श्लोक शब्दशः रसरत्नसमुच्चयके ही उद्धृत किये गये हैं।
अनुपान सम्बन्धी विषय वर्णनके समय विविध रोगोंमें प्रधान औषध को रोगानुसार योग्य अनुपानके साथ देने के विधानके साथ शूल, ज्वर, वात, श्वास, शीतरोग, मेह, त्रिदोष, आदिमे एक एक विशिष्ट द्रव्यके अनुपानका वर्णन वाग्भटके अन्तिम अध्यायमें निर्दिष्ट रोगानुसार अनुपान का छन्दोभेद और शब्दभेदसे अर्थशः अनुकरण ही है ।
इस ग्रंथमें तक्रमेह, · श्वसनक, शीतरोग, आखुपतिजनित ग्रंथि, अंगनामदनमेह ( योनिमेह) आदि रोगोंके नवीन प्रकारोंका वर्णन किया गया
प्रसिद्ध संहिता ग्रन्थोंमें प्रमेहके वीस प्रकारोंके तक्रमेह नामका संकेत नहीं है । उत्तरकालीन बंगसेनमें इसके प्रचारका प्रारंभ द्रष्टिगोचर होता है ।
इस ग्रंथ में अंगनामदनमेह और इसी ग्रन्थकारके अन्य व्याधिनिग्रह नामक ग्रन्थ में योनिमेह नाम प्रसिद्ध श्वेतप्रदरके लिए इस ग्रन्थकारके द्वारा निर्मित नवीन शब्द है ।
प्रदरशब्दसे सामान्य रूपमें रक्तप्रदर और श्वेतनावके लिए प्राचीन रान्थोंमें श्लेष्मला, उपप्लुता आदि योनिभेदके द्वारा होता है । प्रस्तुत
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