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इन आचार्य विश्रामजीने अपना परिचय गुरुपरम्परा के निर्देश द्वारा दिया है । इनके पितृकुल और इसके उपयुक्त अन्य बातोंका संकेत नहीं मिलता ।
श्राचार्य श्री विश्राम जैनधर्म में प्रसिध्ध गोरजी ( गुरुजी - गुरजी ) आगम गच्छ नामक एक अवान्तर शाखा में सम्मिलित जीव ( जीवाभाई ) नामक गोरजी के शिष्य श्री पीताम्बर गोरजी के शिष्य थे । इस प्रकार श्री विश्राम श्री पीताम्बर गोरजी के शिष्य और श्री जीव नामक गोरजी के प्रशिष्य थे ।
इस गुरु परम्पराके वर्णनसे यह प्रतीत होता है कि जैन धर्मावलम्बी गुरु परंपरामें प्राचार्यश्री विश्रामजीका शिष्य रूपमें समावेश है परंतु स्वयं आयुर्वेद आदि शास्त्र सम्बन्धी ज्ञान प्राप्ति पर्यन्त हो जैन परंपराका अवलम्बन करते थे और इनका कुलधर्म जैन संप्रदाय नहीं था ऐसे स्पष्ट ग्रन्थस्थ प्रमाण प्राप्त होते हैं
कालनिर्णय
संवदष्टादशे वर्षे सागरानेत्र चाधिके ।
चैत्रे सिते च पञ्चम्यां गुरौ वारे च ग्रन्थकृत् ॥ कूर्मदेशेऽर्जुनपुरे तत्र वासी सदा किल । गुरुजीवाभिधानस्य गच्छश्चागमसंज्ञकः ।। तस्य पीताम्बरः शिष्यः तत्पादवन्दकः सदा । देवगुरुप्रसादेन विश्रामो ग्रन्थकारकः ||
अनृपानमंजरी ५ / ३९ - ४१
संदष्टादशे चाब्दे अंकाग्निवर्ष संयुते । मासे भाद्रे कृष्णपक्षे पंचम्यां गुरुवासरे ||
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