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रचित किये होंगे । इससे संवत १८६१ से पूर्वके वर्ष ही इन दोनों ग्रन्थों
का रचना काल मानना उचित होगा ।
संवत १८२४ से संवत १८४३ पर्यन्तके वर्ष इन दो ग्रन्थोंकी रचना के लिए स्वीकृति योग्य हैं । सन् १९३९ में प्रकाशित गोंडल रसशाला औषधाश्रम से प्रकाशित व्याधिनिग्रह नामक पुस्तक की भूमिका में विद्वान और वयोवृद्ध श्री जीवराम कालीदासजीनं इस पुस्तकका रचना काल संवत् १८३९ में माना है ।
व्याधिनिग्रह आयुर्वेद के सभी अंगो को लेकर निर्मित ग्रन्थ है और अनुपानमंजरी केवल विषचिकित्सा रूप एक अंग को ही विषय बनाकर रचित ग्रन्थ है ।
कोई भी लेखक सम्पूर्ण शास्त्र के सभी अंगों का समावृत्त करनेवाले ग्रन्थ लेखन के पूर्व में ही अपने लेखन प्रयास की परीक्षा और साफल्य प्राप्ति के आत्मविश्वास के लिए भी एक विषय विषयक ग्रन्थ की रचना करना उचित मानेगा । इस तर्क के अनुसार व्याधिनिग्रह नामक ग्रंथ के पूर्व अनुपान मंजरी नामक गन्थ की रचना मानना होगा ।
जब व्याधिनिगह का रचनाकाल संवत् १८३९ स्वीकृत किया गया है तो इससे पूर्व के १८२४, १८०७, १८३४ और १८३७ में से कोई भी वर्ष अनुपान मंजरी के रचना कालके लिए स्वीकृत किया जाना उचित है ।
श्री कतोभट्टजी के गुरु श्री विट्ठलभट्टजी का जन्म समय संवत् १७९: माना गया है । ग्रनुपानमंजरी के रचनाकाल संवत १८४२ के आसपास श्री विठ्ठल भट्टजी की आयु ४६ वर्ष के आसपास होगी । इसी समय श्री कतोभट्ट विद्यार्थी रूप में अथवा अध्ययन समाप्त कर अधिकारी विद्वान के रूप में वर्तमान होंगे । अनुपान मंजरीकार भी इसी आयु और इसी प्रकार के विशिष्ट विद्वान के
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