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अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014
वर्तमानस्य कालस्यापह्नवे स्वात्मविद्विषाम्॥७३ अर्थात् वर्तमान काल का अपह्नव मान लेने पर अपनी आत्मा के साथ विद्वेष करने वाले अनात्मवादी बौद्धों में स्वसंवेदन आदि का अभाव कैसे रोका जा सकेगा। अभिप्राय यह है कि वर्तमान काल न मानने पर स्वसंवेदनाद्वैत, चित्राद्वैत आदि का अभाव हो जावेगा तथा कुछ भी नहीं जाना जा सकेगा। अतः बौद्धों की कालविषयक मान्यता समीचीन नहीं है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आचार्य विद्यानन्दि स्वामी ने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन पाँच अजीव द्रव्यों के विवेचन द्वारा परमत समीक्षा पूर्वक स्वमत की सयुक्तिक प्रस्थापना की है। आधुनिक विज्ञान के साथ जैनदर्शन सम्मत द्रव्य विवेचना का आश्चर्यजनक साम्य है। अतः दोनों का तुलनात्मक अध्ययन अपेक्षित है। संदर्भ : १. सवार्थसिद्धि, १.४.१४ २. वही, ५.२.२६६ ३. तत्त्वार्थवार्तिक, ५.१.६ ४. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ५.१.२ ५. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१.२ पुस्तक ६, पृष्ठ २ ६. वही, पृष्ठ ३ ७ . वही, पृष्ठ
३ ७ . वही, ५.१.३ ८. सांख्यकारिका, २२ ९. तर्कसंग्रह,सूत्र १,८ १०. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१.२ पृष्ठ ३ (पुस्तक ६) ११. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१.२ १२. 'अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः। कालश्च। - तत्त्वार्थसूत्र, ५.१.५.३९ १३. नियमसार, गाथा ३४
१४. सर्वार्थसिद्धि, ५०३९.२१२ १५. 'असंख्ययेयाः प्रदेशाः धर्माधर्मैकजीवानाम्। आकाशस्यानन्ताः। संख्येयासंख्येयाश्च पुद्गलानाम्।' - तत्त्वार्थसूत्र, ५.८-१० १६. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१, पुस्तक ६, पृष्ठ ३ १७. 'तत्र द्रव्याणि पृथिव्यप्तेजोवायवाकाशकालदिगात्ममनांसि नवैव।-तर्कसंग्रह, २ १८. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१, पुस्तक ६ पृष्ठ ९ १९. 'सव्यभिचारोऽनैकान्तिकः।' - तर्कसंग्रह २०. वैशेषिकसूत्र - कणाद २१. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१ पुस्तक ६ पृष्ठ ९ २२. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१ पुस्तक ६ पृष्ठ ११-१२ २३. वही, पृष्ठ १५
२४. तत्त्वार्थवार्तिक, ५.१.२४ २५. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.१. पुस्तक ६ पृष्ठ ६ २६. The Theory of Atom in Jaina Philosophy, Pg. 5051 २७. तत्त्वार्थसूत्र, ५.२३ २८. पञ्चास्तिकाय, गाथा ८२ २९. तत्त्वार्थसूत्र, ५.५ ३०. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ५.५.१-२, पुस्तक ६ पृष्ठ-३४