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सम्बन्धित योजना- नीति का स्पष्टीकरण भी वहीं किया जा चुका है। इसका प्रथम खण्ड वैदिक/ ब्राठाण संस्कृति खंड के रुप में प्रकाशित हुआ है। उसी क्रम में अब यह द्वितीय रखण्ड 'जैन संस्कृति रवण्ड' के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।
जैन संस्कृति के महत्वपूर्ण विशिष्ट वान्थों को आधार बनाकर तथा उनमें निठित ' अठिया-सम्बन्धी विशिष्ट व चयनित ग्रन्दों को एकत्रित कर हिन्दी अनुवाद के साथ इस । खण्ड में प्रस्तुत किया गया है। पूर्व रखण्ड की तरठ, इसमें भी यह सतर्कता रखी गई है कि अहिंसा के आर्वजनिक महत्व को रेनवाकित करनेवाले सन्दर्भो को ही प्रस्तुत किया जाए।
परम-पूज्य, जैन शासन-सूर्य, संघशारता, आचार्यकल्प गुरुदेव मुनिश्री नामकृष्ण जी महाराज की सत्प्रेरणा व शुभाशीर्वाद से इस विश्वकोश की निर्माण प्रक्रिया निबधि रूप से सम्पन्न हुई है, इसमें कोई सन्देठ नहीं है। इस साहित्यिक कार्य में सहयोग देने
वाले अपने संघस्थ मुनियों, विशेषकर मुनिरत्न श्री अमित मुनि को मैं अपना विशेष - हार्दिक आशीर्वाद व आधुवाद प्रस्तुत करता हूं। अंत में, इस विश्वकोश के प्रकाशक
। 'यूनिवर्सिटी-पब्लिकेशन' तथा इसके अधिकारियों को भी, जिन्होंने प्रकाशन-कार्य को ॐ शीघ्र व सुचारू रूप से सम्पन्न कराया, मेरी ओर से माधुवाद है।
मेरे इस कर्म में प्रमुख सहभागी वसम्पादक मूर्धन्य विद्वान् डॉ. दामोदर शास्त्री ॐ रहे हैं। उन्हें मेरी ओर से तथा सभी अठिंबा-प्रेमी समाज की ओर से साधुवाद व 卐 卐 शुभाशीर्वाद है।
मझे विश्वास है कि यह खण्ड भी भारतीय दर्शन व संस्कृति के अध्येताओं, विज्ञ मनीषी जनों एवं धर्म-श्रद्धालओं के लिए उपादेय सिद्ध होगा।
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-अभद्र मुनि
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