Book Title: Ahimsa Vishvakosh Part 02
Author(s): Subhadramuni
Publisher: University Publication

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ ॥ प्राक्कथन ॥ 听听听听听听听听斯柴號 अढ़िया सभी धर्मों की, विशेषतः भारतीय धर्मों की प्राण है। वह प्रत्येक धर्म की आचार-संहिता में कहीं न कहीं अनुस्यूत/अन्तनिठित है। पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक व आर्थिक -कोई भी समस्या हो, उसका समाधान अठिया से सम्भव ठोता है। नैतिकता ठो या आध्यात्मिकता-दोनों को अनुप्राणित रखने वाली अहिंसाठी है। नि चेतना र अनुशासित, विधायक और व्यवहार्य जीवन-विधान है-अठिया। वह म C समाज की सबसे बड़ी आध्यात्मिक पूंजी है। वह एक आन्तरिक दिव्य प्रकाश है, मानवता की एक गठज-स्वाभाविक शाश्वत ज्योति है। वठ मानव का अविनाशी अविकारी स्वभाव है। ॐ वठ अख्दयता का अग्रीम विस्तार है। प्रकाश की अन्धकार पर, प्रेम की घृणा पर, तथा y अच्छाई की बुराई पर विजय का सर्वोच्च उद्घोष है-अटिं। मानव-मात्र को ही नहीं, अपितु प्राणीमात्र को परस्पर सह-अस्तित्व, स्नेठयौहार्द,सहभागिता व सद्भावना के सत्र जोड़ने वाली वैश्विक आमाजिकता काही दूसरा नाम है-अढ़िया। अठिया वठशक्ति है जो विश्व के समय चैतन्य को एक धरातल पर ला ॐ खड़ी करती है। अढ़िया के सिवा और कोई आधार नहीं, जो खण्ड-रवण्ड होती हुई मानव जाति को एकरूपता देयके या उसे विश्वबन्धुत्व के सत्र में बांध सके। मानव-जाति के प्रकल्पित भेदों व विषमताओं के स्थान पर समता व शान्ति स्थापित करने की क्षमता अढ़िया में ठी है। अढ़िया को जीवन के ठर एक क्षेत्र में व्यापक बना कर ठी, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की पहल की जा सकती है। उपर्युक्त वैचारिक परिप्रेक्ष्य में, अठिया को ठी मानव-धर्म या विश्व-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित ठोने का गौरव प्राप्त होता है। भारतीय संस्कृति के उषाकाल से ही अठिंया' यहां के धर्म-दर्शन में पूर्णतया मुरवरित होती रही है। 'गच्छध्वं, संवदध्वं' 'समाना ठदयानि वः' 'मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामठे' तथा 'सन्दयं मामनग्यम् अविद्वेष कृणोमि' -इत्यादि वैदिक ऋषियों की वाणी में अढ़िया की जो सरिता प्रवाहित ठुई, उसने परवर्ती सांस्कृतिक व दार्शनिक धरातल की की वैचारिक फसल को अनवरत रुपमीच कर संवड़ित किया है। यधपि कभी-कभी यज्ञ # आदि के सन्दर्भ में अठिया धर्म की विकृत व्यानव्या किये जाने से अठिया का स्वर कुछ NEFERENEFFEFFIFFFFFFERENEFFFFFFFFFFFEE /

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 602