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अन्तकृद्दशा-२/-/७
उस काल और उस समय में द्वारका नाम की नगरी थी । महाराज अंधक वृष्णि राज्य करते थे । रानी का नाम धारिणी था | उनके आठ पुत्र थे
[८] अक्षोभ, सागर, समुद्र, हैमवन्त, अचल, धरण, पूर्ण और अभिचन्द्र ।
[९] प्रथम वर्ग के समान इन आठ अध्ययनों का वर्णन भी समझलेना । इन्होंने भी गुणरत्नतप का आराधन किया और १६ वर्ष का संयम पालन करके अन्त में शत्रुजय पर्वत पर एक मास की संलेखना द्वारा सिद्धिपद प्राप्त किया । वर्ग-२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-३)
[ अध्ययन-१7 [१०] श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अंतगडदशा के तृतीय वर्ग के १३ अध्ययन फरमाये हैं जैसे कि अनीयस, अनन्तसेन, अनिहत, विद्वत्, देवयश, शत्रुसेन, सारण, गज, सुमुख, दुर्मुख, कूपक, दारुक, और अनादृष्टि । भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने अन्तगडदशा के १३ अध्ययन बताये हैं तो भगवन् ! अन्तगड सूत्र के तीसरे वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जंबू ! उस काल और उस समय में भद्दिलपुर नामक नगर था । उसके ईशानकोण में श्रीवननामक उद्यान था । जितशत्रु राजा था । नाग नाम का गाथापति था । वह अत्यन्त समृद्धिशाली यावत् तेजस्वी था । उस नाग गाथापति की सुलसा नाम की भार्या थी । वह अत्यन्त सुकोमल यावत् रूपवान् थी । उस नाग गाथापति का पुत्र सुलसा भार्या का आत्मज अनीयस नामक कुमार था । (वह) सुकोमल था यावत् सौन्दर्य से परिपूर्ण था । पाँच धायमाताओं से परिक्षित दृढप्रतिज्ञ कुमार की तरह सर्व वृतान्त समझना । यावत् गिरिगुफा में स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा। तत्पश्चात् अनीयस कुमार को आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र वाला हुआ जानकर माता-पिता ने उसे कलाचार्य के पास भेजा । तत्पश्चात् कलाचार्य ने अनीयस कुमार को बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध करवाई तथा सिखलाई-यावत् वह भोग भोगने में समर्थ हो गया ।
___ तब माता-पिता ने अनीयस कुमार को बाल्यावस्था से पार हुआ जानकर बत्तीस उत्तम इभ्य-कन्याओं का एक ही दिन पाणिग्रहण कराया । विवाह के अनन्तर वह नाग गाथापति अनीयस कुमार को प्रीतिदान देते समय बत्तीस करोड़ चांदी के सिक्के तथा महाबल कुमार की तरह अन्य बत्तीस प्रकार की अनेकों वस्तुएं दी । उस काल तथा उस समय श्रीवन नामक उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि स्वामी पधारे । यथाविधि अवग्रह की याचना करके संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । जनता उनका धर्मोपदेश सुनने के लिये उद्यान में पहुँची और धर्मोपदेश सुन कर अपने-अपने घर वापस चली गई । भगवंत के दर्शन के लिए अनीयसकुमार भी आया यावत् गौतमकुमार की तरह उसने दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा लेने के अनन्तर उन्होंने सामायिक से लेकर चौदह पूर्वो का अध्ययन किया । बीस वर्ष दीक्षा का पालन किया । अन्त समय में एक मास की संलेखना करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध गति को प्राप्त किया । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अष्टम अंग अन्तगड