Book Title: Agam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिसीहं १//9
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नमो नमो निम्पल दंसप्णस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामिने नमः
३९ महानिसीहं
छ छेय सुतं पढमं अज्झयणं- समुद्धरणं
(१) ओम् नमो तित्यस्स, ओम् नमो अरहंताणं, सुयं मे आउलं तेगं भगवया एवमक्खायंइह खलु छउमत्य-संजम-किरियाए वमाणे जे णं केइ साहू वा साहूणी वा से णं इमेणं परमत्य-तत्तसार-सम्भूयत्थ-पसाहग-सुमहत्यातिसय-पवर- वर-महानिसीह-सुयक्खंध-सुयानुसारेणं तिविहं तिवि-हेणं सव्व-भाव-भावंतरंतरहि णं नीसले भवित्ताणं आयहियाए अनंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठतव - संजमागुट्ठाणेसु सव्य- पमाया-लंबण-विष्यमुक्के अनुसमयमहण्णिसमनालसत्ताए सययं अनिव्विण्णे अनन्न-परम-सद्धा-संवेग-वेरग्ग-मग्नगए निणियाणो अणिगूहिय-बल-वीरिय-पुरिसक्कार - परक्कमे अगिलाणीए बोसट्ठ- चत्त- देहे सुणिच्छिएगग्गचित्ते - अभिक्खणं अभिरमेजा |१|
(२) नो णं राग-दोस- मोह-विसय कसाय - नागालंयणाणेग- पमाय- इड्ढि -रस- साया गारवरोद्द-हज्झाण-विगहामिच्छत्ताविरइ-दुट्ठ-जोग - अनाययणसेवणा- कुसीलादि-संसग्गी-पेसुन्न ऽब्मखाण- कलह-जातादि-मय-मच्छरामरीस-ममीकार- अहंकारादि- अणेग-पेय-भिन्न- तामस-भावकलुसिएणं हियएणं हिंसालिय- चोरिक्क मेहुण- परिग्गहारंभ-संकप्पादि-गोयर-अज्झवसिए-धोरपयंड - महारोद्द - धन-चिक्कण पावकम्म- मल-तेव खबलिए असंवुडासव-दारे |२|
(४)
(4)
(६)
(३) एकूक खण-लय-मुहुत्त निमिस-निमिसद्धमंतरमवि ससल्ले विरत्तेज्जा तंजहा | ३ | उवसंते सव्वभावेणं विरते य जया भवे सव्वत्य विसए आया रागेयर-मोह-बजिरे तया संवेगमावण्णे पारलोइय वत्तणि गणेसती सम्म हा मओ कत्य गच्छिहं को धम्मो को वओ नियमो को तबो मेऽणुचिट्ठिओ किं सीलं धारियं होजा को पुण दानो पर्याच्छिओ साणुभाव ओनत्य हीन-मज्झुत्तमे कुले सगे वा मणु-लो वा सोक्खं रिद्धिं लभेजहं अहवा किंथ विसाएणं सव्वं जाणामि अत्तियं दुधरियं जारिसो याहं जे मे दोसा व जे गुणा घोरंधयार - पायाले गमिस्सेऽहमनुत्तरे जत्य दुक्ख सहस्साइं अनुभविस्सं चिरं बहूं (१०) एवं सव्वं विद्याणंते धम्माधम्मं सुहासुरं
(19)
(4)
(9)
अत्येगे गोयमा पाणी जे मोहायहियं न चिट्ठए (११) जे यायाय-हियं कुखा कत्थई पारलोइयं मायाडंभेण तस्साची सयमवी तं न भावए
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