Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Amar Publications
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सभाष्य- चूर्णिके निशीथसूत्रे
तो परं जेण एयाण सव्वासि सरूवं वण्णिज्जति तं भणामि - सव्वासि ठवणाणं, एत्तो सामण्णलक्खणं वोच्छं । मासग्गे भोसग्गे, होणाहीणे य गहणे य || ६४८३ ॥
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"सव्वासि" ति चउसु टवणा रोवणठ णेसु जातो ठत्रणाशेवणाम्रो प्रणो णुवेो भवति ताम्र य जहा णज्जंति तहा तेसि "सामगं" त्ति पिडिय प्रविसिद्ध सखेवप्रो य लक्खणं भणामि - लविखज्जति ताण सरूवो जेण तं लक्खगं । "मासग्गे" त्ति - पडिसेवितं, संचयमासाणामग्गं परिमाणमित्यर्थः । झोसग्गि" त्ति - सेवितमासाण उत्पत्तिनिमित्तमेव प्रारोवणादिवसेहि भागे हीरमाणे कित्तिय पक्खेवं काउ सुद्धं भाग दाहिति ति एयस्स लक्खणं भगियध्वं । "हो" त्ति विसमग्गहणं, तं संवयमासेहि कहं भवतीत्यर्थः । प्रहीणगहणं नाम समग्गहणमित्यर्थः ।। ६४८३ ।।
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आरुवणा जति मासा, ततिभागं तं करे ति पंचगुणं ।
सेसं पंचहि गुणिए, ठवणदिणजुत्ता उ छम्मासा || ६४८४ ||
प्रारोवणाए जतिमासलद्धा संन्वयमासा ठेवणामाससुद्धसेसा तइभागे काय वा, तत्थेगो भागो "तिपंचगुणो" ति - पारसगुणो कायव्वो, सेसा भागा सपिंडिया पंचगुणा काय वा ठवणा दिण जुता जति महिया तो भोमविसुद्धा छम्मासा भवंति एयं कम्मं पण्णरसादिसु श्रारोवणासु कायव्वं, एगादिप्रारोवणासु पुण जाव चोट्स ताव आरोवणदिणेहि चेव गुगेयव्वं ॥ ६४८४||
जतिभि (मि) भत्रे आरुवणा, ततिभागं तस्स पण्णरसहि गुणे ।
ठवणारोवणसहिता, छम्मासा होंति नायव्वा ।। ६.४८५ ॥
"जतिभि" ति - जतिस्थो भारोवणा पढम-बितिय ततियादि वा तत्थ जे संचया मासा लद्धा ते ठवगाशेवणमः सविसुद्धा जतित्थिया प्रारोवणा तत्तियभागत्था ते करेयव्वा, जति एगभागत्या तो पण्णरसगुणा ठगावणसहिता भोसविसुद्धा छम्मासा भवंति । अध णेगभागत्था तो एगभागो पष्णरसगुणो सेसा पंचगुणा ठवणारोवणदिणसहिया छम्मासा, कचिदेवं कर्तव्यं ॥ ६४८५ ॥
गुणकारेण कसिणाकसिणजाणणत्थं इमं भण्णति -
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जेण तु पण गुणिता, होऊणं सो ण होति गुणकारो ।
तस्सुवरिं जेण गुणे, होति समो सो तु गुणकारो ||६४८६||
[ सूत्र - १४
"पदेण" ति - एगदुगतिगादितेहि जेग श्रारोवणा "गुणिया होउ" त्ति गुणिता संतीत्यर्थः । अहवा - ठवणादिणसंजुत्ता "होउ" ति ऊगा अहिया वा भवंति त्ति, सो तस्स गुणकारी ण भवति, जहा पक्खिया श्रावणा दसहि गुणिना वीसियठवण संजुत्ता ऊगा छम्मासा, एक्कारसगुणा महिया भवंति तो णायव्वं एतेसि कसिण करणं न होइ नास्त्येवेत्यर्थः । प्रकसिणत्वात्, "तस्मुरि" ति एक्कारमह उवरि श्रोमत्थग परिहाणीए पक्खिया आरोवणा " जेण गुणे" त्ति दसगुणिता तीसिय ठत्रण! होइ । “समो" त्ति छम्मासितो रासी, एत्थ सो दसको समकरणं पडुच्च गुणकारो भवतीत्यर्थः ।
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एवं वह अहिं सतहि छहि पंचहि चउहि तीहि बीहि एक्केण य पक्खितं भारोवणं गुणंउ जीए ठत्रणाए संजुत्ता छम्मासा भवंति तत्थ सो गुणकारो गायत्री. तावतिया य पक्खियाए कसिया लब्भति । एवं वीसिया रोवणादि णवरं श्रट्टभागाय ओमत्थियगुणकारी कायन्त्रो एवं सेसाम्रो वि सव्वाओ
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